Archives for: "February 2019"
धारा ११२ : व्यावृत्तियां :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ११२ : व्यावृत्तियां : १.(१) इस संहिता में अन्तर्विष्ट किसी भी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह - क) संविधान के अनुच्छेद १३६ या अन्य किसी उपबन्ध के अधीन उच्चतम न्यायालय की शक्तियों पर प्रभाव डालती है, अथवा ख)… more »
धारा १११-क : फेडरल न्यायालयों को अपीलें :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १११-क : १.(फेडरल न्यायालयों को अपीलें) : फेडरल न्यायालय अधिनियम १९४१ (१९४१ का २१) की धारा २ द्वारा निरसित ।) -------- १. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, १९३७ द्वारा अन्त:स्थापित । INSTALL Android APP * नोट… more »
धारा १११ : कुछ अपीलों का वर्जन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १११ : कुछ अपीलों का वर्जन : विधि अनुकूलन आदेश, १९५० द्वारा निरसित । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी केवल शिक्षा या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए है, हालांकि इसे कहीं भी कानूनी… more »
धारा ११० : लोप किया गया :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ११० : १.(लोप किया गया :) -------- १. १९७३ के अधिनियम सं. ४९ की धारा ३ द्वारा ११० का लोप किया गया । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी केवल शिक्षा या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए है,… more »
धारा १०९ : उच्चतम न्यायालय में अपीलें कब होंगी :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ उच्चतम न्यायालय में अपीलें धारा १०९ : १.(उच्चतम न्यायालय में अपीलें कब होंगी : संविधान के भाग ५ के अध्याय ४ के उपबन्धों के और ऐसे नियमों के जो, भारत के न्यायालयों से अपीलों के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा समय-समय पर बनाए… more »
धारा १०८ : अपीली डिक्रियों और आदेशों की अपीलों में..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १०८ : अपीली डिक्रियों और आदेशों की अपीलों में प्रक्रिया : मूल डिक्रियों की अपीलों से सम्बन्धित इस भाग के उपबन्ध जहां तक हो सके, - क) अपीली डिक्रियों की अपीलों को लागू होंगे, तथा ख) उन आदेशों की अपीलों को लागू होंगे जो इस… more »
धारा १०७ : अपील न्यायालय की शक्तियां :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ अपील सम्बन्धी साधारण उपबन्ध धारा १०७ : अपील न्यायालय की शक्तियां : १) ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, अपील न्यायालय को यह शक्ति होगी कि वह - क) मामले का अंतिम रुप से अवधारण करे ; ख) मामले का… more »
धारा १०६ : कौन से न्यायालय अपील सुनेंगे :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १०६ : कौन से न्यायालय अपील सुनेंगे : जहां किसी आदेश की अपील अनुज्ञात है, वहां वह उस न्यायालय में होगी, जिसमें उस वाद की डिक्री की अपील होती है जिसमें ऐसा आदेश किया गया था, या जहां ऐसा आदेश अपीली अधिकारिता के प्रयोग में… more »
धारा १०५ : अन्य आदेश :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १०५ : अन्य आदेश : १) अभिव्यक्त रुप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, किसी न्यायालय द्वारा अपनी आरंभिक या अपीली अधिकारिता के प्रयोग में किए गए किसी भी आदेश की कोई भी अपील नहीं होगी, किन्तु जहां डिक्री की अपील की जाती है वहां… more »
धारा १०४ : वे आदेश जिनकी अपील होगी :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ आदेशों की अपील धारा १०४ : वे आदेश जिनकी अपील होगी : १) निम्नलिखित की अपील होगी - १.(***) २.(चच) धारा ३५-क के अधीन आदेश;) ३.(चचक) धारा ९१ या धारा ९२ के अधीन, यथास्थिति, धारा ९१ या धारा ९२ में निर्दिष्ट प्रकृति के वाद को… more »
धारा १०३ : तथ्य-विवाद्यकों का अवधारण करने की उच्च..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १०३ : १.(तथ्य-विवाद्यकों का अवधारण करने की उच्च न्यायालय की शक्ति : यदि अभिलेख में का साक्ष्य पर्याप्त हो तो किसी भी द्वितीय अपील में उच्च न्यायालय ऐसी अपील के निपटारे के लिए आवश्यक कोई विवाद्यक अवधारित कर सकेगा, जो - क)… more »
धारा १०२ : कतिपय मामलों में आगे द्वितीय अपील का..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १०२ : १.(कतिपय मामलों में आगे द्वितीय अपील का न होना : किसी डिक्री से कोई द्वितीय अपील नहीं होगी जब मूल वाद की विषय वस्तु पच्चीस हजार रुपए से अधिक धन की वसूली के लिए नहीं है ।) -------- १. २००२ के अधिनियम सं. २२ की धारा… more »
धारा १०१ : द्वितीय अपील का किसी भी अन्य आधार पर न होना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १०१ : द्वितीय अपील का किसी भी अन्य आधार पर न होना : कोई भी द्वितीय अपील धारा १०० में वर्णित आधारों पर होगी, अन्यथा नहीं । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी केवल शिक्षा या शैक्षणिक… more »
धारा १००-क : कतिपय मामलों में आगे अपील का न होना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १००-क : १.(कतिपय मामलों में आगे अपील का न होना : किसी उच्च न्यायालय के लिए किसी लेटर्स पेटेंट में या विधि का बल रखने वाली किसी लिखत में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी मूल या… more »
धारा १०० : द्वितीय अपील :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ अपीली डिक्रियों की अपीलें धारा १०० : १.(द्वितीय अपील : १) उसके सिवाय जैसा इस संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अभिव्यक्त रुप से उपबंधित है, उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी न्यायालय द्वारा अपील में पारित… more »
धारा ९९-क : धारा ४७ के अधीन तब तक किसी आदेश को..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९९-क : धारा ४७ के अधीन तब तक किसी आदेश को उलटा न जाना या उपान्तरित न किया जाना जब तक मामले के विनिश्चय पर प्रतिकूल नहीं पडता है : धारा ९९ के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, धारा ४७ के अधीन कोई भी आदेश,… more »
धारा ९९ : कोई भी डिक्री ऐसी गलती या अनियमितता के कारण..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९९ : कोई भी डिक्री ऐसी गलती या अनियमितता के कारण जिससे गुणागुण या अधिकारिता पर प्रभाव नहीं पडता है न तो उलटी जाएगी और न उपान्तरित की जाएगी : पक्षकारों या वादहेतुकों के ऐसे कुसंयोजन १.(या असंयोजन) के या बाद की किन्हीं भी… more »
धारा ९८ : जहां कोई अपील दो या अधिक न्यायाधीशों द्वारा..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९८ : जहां कोई अपील दो या अधिक न्यायाधीशों द्वारा सुनी जाए वहां विनिश्चय : १) जहां कोई अपील दो या अधिक न्यायाधीशों के न्यायपीठ द्वारा सुनी जाती है वहां अपील का विनिश्चय ऐसे न्यायाधीशों की या ऐसे न्यायाधीशों की बहुसंख्या… more »
धारा ९७ : जहां प्रारम्भिक डिक्री की अपील नहीं की ..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९७ : जहां प्रारम्भिक डिक्री की अपील नहीं की गई है वहां अन्तिम डिक्री की अपील : जहां इस संहिता के प्रारम्भ के पश्चात् पारित प्रारम्भिक डिक्री से व्यथित कोई पक्षकार ऐसी डिक्री की अपील नहीं करता है वहां वह उसकी शुद्धता के… more »
धारा ९६ : मूल डिक्री की अपील :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भाग ७ अपीलें मूल डिक्रियों की अपीलें धारा ९६ : मूल डिक्री की अपील : १) वहां के सिवाय जहां इस संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अभिव्यक्त रुप से अन्यथा उपबन्धित है, ऐसी हर डिक्री की, जो आरम्भिक… more »
धारा ९५ : अपर्याप्त आधारों पर गिरफ्तारी, कुर्की या..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९५ : अपर्याप्त आधारों पर गिरफ्तारी, कुर्की या व्यादेश अभिप्राप्त करने के लिए प्रतिकर : १) जहां किसी वाद में, जिसमें इसके ठीक पहले की धारा के अधीन कोई गिरफ्तारी या कुर्की कर ली गई है या अस्थायी व्यादेश दिया गया है - क)… more »
धारा ९४ : अनुपूरक कार्यवाहियां :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भाग ६ अनुपूरक कार्यवाहियां धारा ९४ : अनुपूरक कार्यवाहियां : न्यायालय न्यास के उद्देश्यों का विफल किया जाना निवारित करने के लिए उस दशा में जिसमें ऐसा करना विहित हो - क) प्रतिवादी को गिरफ्तार करने के लिए और न्यायालय के सामने… more »
धारा ९३ : प्रेसिडेंसी नगरों से बाहर महाधिवक्ता की..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९३ : प्रेसिडेंसी नगरों से बाहर महाधिवक्ता की शक्तियों का प्रयोग : महाधिवक्ता को धारा ९१ और धारा ९२ द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग प्रेसिडेंसी नगरों से बाहर राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से कलक्टर या ऐसा अधिकारी भी कर… more »
धारा ९२ : लोक पूर्त कार्य :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ९२ : १.(लोक पूर्त कार्य : १) पूर्त या धार्मिक प्रकृति के लोक प्रयोजनों के लिए सृष्ट किसी अभिव्यक्त या आन्वयिक न्यास के किसी अभिकथित भंग के मामले में, या जहां ऐसे किसी न्यास के प्रशासन के लिए न्यायालय का निदेश आवश्यक समझा… more »
धारा ९१ : लोक न्यूसेंस और लोक पर प्रभाव डालने..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ १.(लोक न्यूसेंस और लोक पर प्रभाव डालने वाले अन्य दोषपूर्ण कार्य) धारा ९१ : लोक न्यूसेंस और लोक पर प्रभाव डालने वाले अन्य दोषपूर्ण कार्य : २.(१) लोक न्यूसेंस या अन्य ऐसे दोषपूर्ण कार्य की दशा में जिससे लोक पर प्रभाव पडता है या… more »
धारा ९० : न्यायालय की राय के लिए मामले का कथन..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ विशेष मामला धारा ९० : न्यायालय की राय के लिए मामले का कथन करने की शक्ति : जहां कोई व्यक्ति न्यायालय की राय के लिए किसी मामले का कथन करने के लिए लिखित करार कर ले वहां न्यायालय विहित रीति से उसका विचारण और अवधारण करेगा ।… more »
धारा ८९ : न्यायालय के बाहर विवादों का निपटारा :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भाग ५ विशेष कार्यवाहियां माध्यस्थम् धारा ८९ : १.(न्यायालय के बाहर विवादों का निपटारा : १) जहां न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि किसी समझौते के ऐसे तत्व विद्यमान है, जो पक्षकारों को स्वीकार्य हो सकते है वहां न्यायालय समझौते के… more »
धारा ८८ : अन्तराभिवाची वाद कहां संस्थित किया जा सकेगा :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ अन्तराभिवाची धारा ८८ : अन्तराभिवाची वाद कहां संस्थित किया जा सकेगा : जहां दो या अधिक व्यक्ति उस ऋण, धनराशि या अन्य जंगम या स्थावर सम्पत्ति के बारे में दूसरे के प्रतिकूल दावा किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से करते है जो प्रभारों या… more »
धारा ८७-ख : भूतपूर्व भारतीय राज्यों के शासकों को धारा..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भूतपूर्व भारतीय राज्यों के शासकों के विरुद्ध वाद धारा ८७-ख : भूतपूर्व भारतीय राज्यों के शासकों को धारा ८५ और धारा ८६ का लागू होना : १.(१) किसी भूतपूर्व भारतीय राज्य के शासक द्वारा या उसके विरुद्ध किसी वाद की दशा में जो… more »
धारा ८७-क : विदेशी राज्य और शासक की परिभाषाएं :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८७-क : विदेशी राज्य और शासक की परिभाषाएं : १) इस भाग में - क) विदेशी राज्य से भारत से बाहर का ऐसा कोई राज्य अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त है ; तथा ख) विदेशी राज्य के सम्बन्ध में शासक से ऐसा व्यक्ति… more »
धारा ८७ : विदेशी शासकों का वादों के पक्षकारों के रुप..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८७ : विदेशी शासकों का वादों के पक्षकारों के रुप में अभिधान : विदेशी राज्य का शासक अपने राज्य के नाम से वाद ला सकेगा और उसके विरुद्ध वाद उसके राज्य के नाम से लाया जाएगा : परन्तु धारा ८६ में निर्दिष्ट सहमति देने में… more »
धारा ८६ : विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८६ : विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद : १) विदेशी राज्य १.(***) पर कोई भी वाद किसी भी न्यायालय में, जो अन्यथा ऐसे वाद का विचारण करने के लिए सक्षम है, केन्द्रीय सरकार की ऐसी सहमति के बिना नहीं लाया जा… more »
धारा ८५ : विदेशी शासकों की और से अभियोजन या प्रतिरक्षा..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८५ : विदेशी शासकों की और से अभियोजन या प्रतिरक्षा करने के लिए सरकार द्वारा विशेष रुप से नियुक्त किए गए व्यक्ति : १) विदेशी राज्य के शासक के अनुरोध पर या ऐसे शासक की ओर से कार्य करने की केन्द्रीय सरकार की राय में सक्षम… more »
धारा ८४ : विदेशी राज्य कब वाद ला सकेंगे :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८४ : विदेशी राज्य कब वाद ला सकेंगे : कोइ विदेशी राज्य किसी भी सक्षम न्यायालय में वाद ला सकेगा : परन्तु यह तब जब कि वाद का उद्देश्य ऐसे राज्य के किसी शासक में या ऐसे राज्य के किसी अधिकारी में उसकी लोक हैसियत में निहित… more »
धारा ८३ : अन्य देशीय कब वाद ला सकेंगे :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ १.(अन्य देशियों द्वारा और विदेशी शासकों, राजपूतों और दूतों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद धारा ८३ : अन्य देशीय कब वाद ला सकेंगे : अन्य देशीय शत्रु, जो केन्द्रीय सरकार की अनुज्ञा से भारत में निवास कर रहें है, और अन्य देशीय मित्र… more »
धारा ८२ : डिक्री का निष्पादन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८२ : डिक्री का निष्पादन : १.(१) जहां सरकार द्वारा या उसके विरुद्ध या ऐसे कार्य की बाबत जिसके बारे में यह तात्पर्यित है कि वह ऐसे लोक अधिकारी द्वारा अपनी पदीय हैसियत में किया गया है, उसके द्वारा या उसके विरुद्ध किसी वाद… more »
धारा ८१ : गिरफ्तारी और स्वीय उपसंजाति से छूट :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८१ : गिरफ्तारी और स्वीय उपसंजाति से छूट : ऐसे किसी भी कार्य के लिए, जो लोक अधिकारी द्वारा उसकी पदीय हैसियत में किया गया तात्पर्यित है, उसके विरुद्ध संस्थित किए गए वाद में - क) डिक्री के निष्पादन में से अन्यथा न तो… more »
धारा ८० : सूचना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ८० : सूचना : १.(१)२.(उसके सिवाय जैसा उपधारा (२) में उपबन्धित है, ३.(सरकार के (जिसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार भी आती है) विरुद्ध) या ऐसे कार्य की बाबत जिसके बारे में यह तात्पर्यित है कि वह ऐसे लोक अधिकारी… more »
धारा ७९ : सरकार द्वारा या उसके विरुद्ध वाद :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भाग ४ : विशिष्ट मामलों में वाद सरकार द्वारा या उसके विरुद्ध वाद या अपनी पदीय हैसियत में लोक अधिकारी द्वारा या उसके विरुद्ध वाद धारा ७९ : १.(सरकार द्वारा या उसके विरुद्ध वाद : सरकार द्वारा या उसके विरुद्ध वाद में, यथास्थिति,… more »
धारा ७८ : विदेशी न्यायालयों द्वारा निकाले गए कमीशन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ७८ : १.(विदेशी न्यायालयों द्वारा निकाले गए कमीशन : ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए जो विहित की जाएं, साक्षियों की परीक्षा करने के लिए कमीशनों के निष्पादन और लौटने के सम्बन्ध रखने वाले उपबन्ध उन कमीशनों को लागू… more »
धारा ७७ : अनुरोध-पत्र :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ७७ : अनुरोध-पत्र : कमीशन निकालने के बदले न्यायालय ऐसे व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए अनुरोध-पत्र निकाल सकेगा जो ऐसे स्थान में निवास करता है जो १.(भारत) के भीतर नहीं है । -------- १. १९५१ के अधिनियम सं. २ की धारा ३ द्वारा… more »
धारा ७६ : अन्य न्यायालय को कमीशन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ७६ : अन्य न्यायालय को कमीशन : १) किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन उस राज्य से, जिसमें उसे निकालने वाला न्यायालय स्थित है, भिन्न राज्य में स्थित किसी ऐसे न्यायालय को निकाला जा सकेगा (जो उच्च न्यायालय नहीं है और)… more »
धारा ७५ : कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भाग ३ आनुषंगिक कार्यवाहियां कमीशन धारा ७५ : कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति : ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं न्यायालय - क) किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए; ख) स्थानीय अन्वेषण करने के लिए ;… more »
धारा ७४ : निष्पादन का प्रतिरोध :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ७४ : निष्पादन का प्रतिरोध : जहां न्यायालय का यह समाधन हो जाता है कि स्थावर सम्पत्ति के कब्जे के लिए डिक्री के निष्पादन में विक्रीत स्थावर सम्पत्ति का क्रेता सम्पत्ति पर कब्जा अभिप्राप्त करने में निर्णीत-ऋणी या उसकी ओर से… more »
धारा ७३ : निष्पादन-विक्रय के आगमों का डिक्रीदारों..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ आस्तियों का वितरण धारा ७३ : निष्पादन-विक्रय के आगमों का डिक्रीदारों के बीच आनुपातिक रुप से वितरित किया जाना : १) जहां आस्तियां न्यायालय द्वारा धारित है और ऐसी आस्तियों की अभिप्राप्ति के पूर्व एक से अधिक व्यक्तियों ने धन के… more »
धारा ६८ से ७२ : निरसित :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ स्थावर सम्पत्ति के विरुद्ध डिक्रियों का निष्पादन करने की शक्ति का कलक्टर को प्रत्यायोजन धारा ६८ से ७२ : निरसित : सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, १९५६ (१९५६ का ६६) की धारा ७ द्वारा निरसित । INSTALL Android APP *… more »
धारा ६७ : धन के संदाय की डिक्रियों के निष्पादन में भूमि..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६७ : धन के संदाय की डिक्रियों के निष्पादन में भूमि के विक्रय के बारे में नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति : १.(१) २.(*) राज्य सरकार किसी भी स्थानीय क्षेत्र के लिए ऐसे नियम, जो धन के संदाय की डिक्रियों के निष्पादन में… more »
धारा ६६ : लोप किया गया :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६६ : १.(लोप किया गया : -------- १. १९८८ के अधिनियम सं. ४५ की धारा ७ द्वारा (१९-५-१९८८ से) धारा ६६ का लोप किया गया । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी केवल शिक्षा या शैक्षणिक… more »
धारा ६५ : क्रेता का हक :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ विक्रय धारा ६५ : क्रेता का हक : जहां किसी डिक्री के निष्पादन में स्थावर सम्पत्ति का विक्रय किया गया है और ऐसा विक्रय आत्यन्तिक हो गया है वहां यह समझा जाएगा कि सम्पत्ति उस समय से, जब उसका विक्रय किया गया है, न कि उस समय से, जब… more »
धारा ६४ : कुर्की के पश्चात् सम्पत्ति के प्राइवेट अन्य..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६४ : कुर्की के पश्चात् सम्पत्ति के प्राइवेट अन्य संक्रामण का शुन्य होना : १.(१) जहां कुर्की की जा चुकी है वहां कुर्क की गई सम्पत्ति या उसमें के किसी हित का ऐसी कुर्की के प्रतिकूल प्राइवेट अन्तरण या परिदान और किसी ऋण,… more »
धारा ६३ : कई न्यायालयों ..कुर्क की गई सम्पत्ति :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६३ : कई न्यायालयों की डिक्रीयों के निष्पादन में कुर्क की गई सम्पत्ति : १) जहां वह सम्पत्ति, जो किसी न्यायालय की अभिरक्षा में नहीं है, एक से अधिक न्यायालयों की डिक्रीयों के निष्पादन में कुर्क की हुई है वहां वह न्यायालय,… more »
धारा ६२ : निवास-गृह में सम्पत्ति का अभिग्रहण :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६२ : निवास-गृह में सम्पत्ति का अभिग्रहण : १) कोई भी व्यक्ति इस संहिता के अधीन जंगम संपत्ति का अभिग्रहण निर्दिष्ट या प्राधिकृत करने वाली किसी आदेशिका का निष्पादन करते हुए किसी निवास-गृह में सूर्यास्त के पश्चात् और… more »
धारा ६१ : कृषि-उपज को भागत: छूट :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६१ : कृषि-उपज को भागत: छूट : १.(***) राज्य सरकार राजपत्र में प्रकाशित साधारण या विशेष आदेश द्वारा यह घोषणा कर सकेगी कि कृषि-उपज या कृषि के किसी वर्ग के ऐसे प्रभाग को जिसकी बाबत राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि वह उस… more »
धारा ६० : वह सम्पत्ति, जो डिक्री के निष्पादन में..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ६० : १.(वह सम्पत्ति, जो डिक्री के निष्पादन में कुर्क और विक्रय की जा सकेगी : १) निम्नलिखित सम्पत्ति डिक्री के निष्पादन में कुर्क और विक्रय की जा सकेगी अर्थात् भूमि, गृह या अन्य निर्माण, माल, धन, बैंक-नोट, चैक,… more »
धारा ५९ : रुग्णता के आधार पर छोडा जाना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५९ : रुग्णता के आधार पर छोडा जाना : १) न्यायालय निर्णीत-ऋणी की गिरफ्तारी के लिए वारण्ट निकाले जाने पश्चात् किसी भी समय उसकी गंभीर रुग्णता के आधार पर उस वारण्ट का रद्द कर सकेगा । २) जहां निर्णीत-ऋणी गिरफ्तार किया जा चुका… more »
धारा ५८ : निरोध और छोडा जाना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५८ : निरोध और छोडा जाना : १) डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार में निरुद्ध हर व्यक्ति, - क) जहां डिक्री १.(२.(पांच हजार रुपए)) से अधिक धनराशि का संदाय करने के लिए है १.(वहां तीन मास से अनधिक अवधि के लिए, और) ३.(ख)… more »
धारा ५७ : जीवन-निर्वाह भत्ता :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५७ : जीवन-निर्वाह भत्ता : राज्य सरकार निर्णीत-ऋणियों के जीवन-निर्वाह के लिए संदेय मासिक भत्तों के मापमान, उनकी पंक्ति, मूलवंश और राष्ट्रिकता के अनुसार श्रेणीबद्ध करके नियत कर सकेगी । INSTALL Android APP * नोट (सूचना)… more »
धारा ५६ : धन की डिक्री के निष्पादन में स्त्रियों की..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५६ : धन की डिक्री के निष्पादन में स्त्रियों की गिरफ्तारी या निरोध का निषेध : इस भाग में किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय धन के संदाय की डिक्री के निष्पादन में स्त्री को गिरफ्तार करने और सिविल कारगार में निरुद्ध करने के… more »
धारा ५५ : गिरफ्तारी और निरोध :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५५ : गिरफ्तारी और निरोध : १) निर्णीत-ऋणी डिक्री के निष्पादन में किसी भी समय और किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकेगा और यथासाध्य शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष लाया जाएगा और वह उस जिले के सिविल कारागार में, जिसमें निरोध का… more »
धारा ५४ : सम्पदा का विभाजन या अंश का पृथक्करण :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५४ : सम्पदा का विभाजन या अंश का पृथक्करण : जहां डिक्री किसी ऐसी अविभक्त सम्पदा के विभाजन के लिए है, जिस पर सरकार को दिए जाने के लिए राजस्व निर्धारित है, या ऐसी सम्पदा के अंश के पृथक् कब्जे के लिए है वहां सम्पदा का विभाजन… more »
धारा ५३ : पैतृक सम्पत्ति का दायित्व :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५३ : पैतृक सम्पत्ति का दायित्व : पुत्र या अन्य वंशज के हाथ में की ऐसी सम्पत्ति के बारे में, जो मृत पूर्वज के ऐसे ऋण के चुकाने के लिए हिन्दू विधि के अधीन दायी है, जिसके लिए डिक्री पारित की जा चुकी है, धारा ५० और धारा ५२… more »
धारा ५२ : विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध डिक्री का प्रवर्तन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५२ : विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध डिक्री का प्रवर्तन : १) जहां किसी मृत व्यक्ति के विधिक प्रतिनिधि के रुप में किसी पक्षकार के विरुद्ध कोई डिक्री पारित की गई है और डिक्री मृतक की सम्पत्ति में से धन संदत्त किए जाने के लिए है… more »
धारा ५१ : निष्पादन कराने की न्यायालय की शक्तियां :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ निष्पादन-प्रक्रिया धारा ५१ : निष्पादन कराने की न्यायालय की शक्तियां : ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाए, न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर आदेश दे सकेगा कि डिक्री का निष्पान - क) विनिर्दिष्ट रुप से… more »
धारा ५० : विधिक प्रतिनिधि :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ५० : विधिक प्रतिनिधि : १) जहां डिक्री के पूर्णत: तुष्ट किए जाने से पहले निर्णीत-ऋणी की मृत्यु हो जाती है वहां डिक्री का धारक डिक्री पारित करने वाले न्यायालय में आवेदन कर सकेगा कि वह उसका निष्पादन मृतक के विधिक प्रतिनिधि… more »
धारा ४९ : अन्तरिती :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ अन्तरिती और विधिक प्रतिनिधि धारा ४९ : अन्तरिती : डिक्री का हर अन्तरिती, उसे उन साम्याओं के (यदि कोई हों) अधीन रहते हुए धारण करेगा जिन्हें निर्णीत-ऋणी मूल डिक्रीदार के विरुद्ध प्रवर्तित करा सकता था । INSTALL Android APP *… more »
धारा ४८ : कुछ मामलों में निष्पादन वर्जित :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ निष्पादन के लिए समय की सीमा धारा ४८ : कुछ मामलों में निष्पादन वर्जित : परिसीमा अधिनियम, १९६३ (१९६३ का ३६) की धारा २८ द्वारा (१ जनवरी, १९६४ से) निरसित । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी… more »
धारा ४७ : प्रश्न जिनका अवधारण डिक्री का निष्पादन...
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४७ : प्रश्न जिनका अवधारण डिक्री का निष्पादन करने वाला न्यायालय करेगा : १) वे सभी प्रश्न, जो उस वाद के पक्षकारों के या उनके प्रतिनिधियों के बीच पैदा होते है, जिसमें डिक्री पारित की गई थी और जो डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन… more »
धारा ४६ : आज्ञापत्र :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४६ : आज्ञापत्र : १) जब कभी डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर ठीक समझे तब वह किसी ऐसे अन्य न्यायालय को जो उस डिक्री के निष्पादन के लिए सक्षम है, यह आज्ञापत्र निकाल सकेगा कि वह निर्णीत-ऋणी की उसी… more »
धारा ४५ : भारत के बाहर डिक्रियों का निष्पादन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४५ : १.(भारत के बाहर डिक्रियों का निष्पादन : इस भाग की पूर्वगामी धाराओं में से उतनी धाराओं का, जितनी न्यायालय को किसी अन्य न्यायालय में निष्पादन के लिए डिक्री भेजने के लिए सशक्त करती है, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह किसी… more »
धारा ४४ : जिन स्थानों पर...डिक्रीयों का निष्पादन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४४ : १.(जिन स्थानों पर इस संहिता का विस्तार नहीं है, वहां के राजस्व न्यायालयों द्वारा पारित डिक्रीयों का निष्पादन : राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह घोषित कर सकेगी कि भारत के ऐसे किसी भाग के, जिस पर इस संहिता… more »
धारा ४४-क : १.( व्यतिकारी राज्यक्षेत्रों के न्यायालयों..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४४-क : १.( व्यतिकारी राज्यक्षेत्रों के न्यायालयों द्वारा पारित डिक्रियों का निष्पादन : १) जहां २.(***) किसी व्यतिकारी राज्यक्षेत्र के वरिष्ठ न्यायालयों में से किसी की डिक्री की प्रमाणित प्रति जिला न्यायालय में फाइल की गई… more »
धारा ४३ : जिन स्थानों पर इस संहिता का विस्तार नहीं..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४३ : १.(जिन स्थानों पर इस संहिता का विस्तार नहीं है, वहां के सिविल न्यायालयों द्वारा पारित डिक्रीयों का निष्पादन : यदि कोई डिक्री, जो किसी ऐसे सिविल न्यायालय द्वारा पारित की गई है, जो भारत के किसी ऐसे भाग में स्थापित है… more »
धारा ४२ : अन्तरित डिक्री के निष्पादन में न्यायालय..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४२ : अन्तरित डिक्री के निष्पादन में न्यायालय की शक्तियां : १.(१) अपने को भेजी गई डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय को ऐसी डिक्री के निष्पादन में वे ही शक्तियां होंगी जो उसकी होती यदि वह उसके ही द्वारा पारित की गई… more »
धारा ४१ : निष्पादन कार्यवाहियों के परिणाम का प्रमाणित..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४१ : निष्पादन कार्यवाहियों के परिणाम का प्रमाणित किया जाना : वह न्यायालय, जिसे डिक्री निष्पादन के लिए भेजी जाती है ऐसी डिक्री पारित करने वाले न्यायालय को ऐसे निष्पादन का तथ्य या जहां पूर्व कथित न्यायालय उसे निष्पादित… more »
धारा ४० : किसी अन्य राज्य के न्यायालय को डिक्री..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ४० : किसी अन्य राज्य के न्यायालय को डिक्री का अन्तरण : जहां डिक्री किसी अन्य राज्य में निष्पादन के लिए भेजी जाती है वहां वह ऐसे न्यायालय को भेजी जाएगी, और ऐसी रीति से निष्पादित की जाएगी जो उस राज्य में प्रवृत्त नियमों… more »
धारा ३९ : डिक्री का अन्तरण :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३९ : डिक्री का अन्तरण : १) डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर उसे १.(सक्षम अधिकारिता वाले अन्य न्यायालय को) निष्पादन के लिए भेजेगा :- क) यदि वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध डिक्री पारित की गई है, ऐसे अन्य… more »
धारा ३८ : वह न्यायालय जिसके द्वारा डिक्रियां निष्पादित..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ वे न्यायालय जिनके द्वारा डिक्रियां निष्पादित की जा सकेंगी धारा ३८ : वह न्यायालय जिसके द्वारा डिक्रियां निष्पादित की जा सकेगी : डिक्री या तो उसे पारित करने वाले न्यायालय द्वारा या उस न्यायालय द्वारा, जिसे वह निष्पादन के लिए… more »
धारा ३७ : डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की परिभाषा :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३७ : डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की परिभाषा : जब तक कि कोई बात, विषय या संदर्भ में विरुद्ध न हो, डिक्रियों के निष्पादन के सम्बन्ध में डिक्री पारित करने वाला न्यायालय पद के या उस प्रभाव वाले शब्दों के बारे में यह समझा… more »
धारा ३६ : आदेशों को लागू होना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ भाग २ : निष्पादन साधारण धारा ३६ : ३.(आदेशों को लागू होना : इस संहिता के डिक्रियों के निष्पादन से सम्बन्धित उपबन्धों के बारे में (जिनके अन्तर्गत डिक्री के अधीन संदाय से संबंधित उपबन्ध भी है) यही समझा जाएगा कि वे आदेशों के… more »
धारा ३५-ख : विलम्ब कारित करने के लिए खर्चा :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३५-ख : १.(विलम्ब कारित करने के लिए खर्चा : १) यदि किसी वाद की सुनवाई के लिए या उसमें कोई कार्यवाही करने के लिए नियत किसी तारीख को, वाद का कोई पक्षकार - क) कार्यवाही करने में, जो वह उस तारीख को इस संहिता द्वारा या इसके… more »
धारा ३५-क : मिथ्या या तंग करने वाले दावों या..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३५-क : मिथ्या या तंग करने वाले दावों या प्रतिरक्षाओं के लिए प्रतिकरात्मक खर्चे : १) यदि किसी वाद में या अन्य कार्यवाही में २.(जिसके अन्तर्गत निष्पादन कार्यवाही आती है किन्तु ३.(अपील या पुनरीक्षण नहीं आता है)) कोई पक्षकार… more »
धारा ३५ : खर्चे :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ खर्चे धारा ३५ : १.(खर्चे : १) न्यायालय को, किसी वाणिज्यिक विवाद के संबंध में, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या नियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, यह अवधारण करने का विवेकाधिकार है कि:- क) क्या खर्चे एक पक्षकार… more »
धारा ३४ : ब्याज :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ ब्याज धारा ३४ : ब्याज : १) जहां और जहां तक कि डिक्री धन के संदाय के लिए है, न्यायालय डिक्री में यह आदेश दे सकेगा कि न्यायनिर्णीत मूल राशि पर किसी ऐसे ब्याज के अतिरिक्त जो ऐसी राशि पर वाद संस्थित किए जाने से पूर्व की किसी अवधि… more »
धारा ३३ : निर्णय और डिक्री :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ निर्णय और डीक्री धारा ३३ : निर्णय और डिक्री : न्यायालय मामले की सुनवाई हो चुकने के पश्चात् निर्णय सुनाएगा और ऐसे निर्णय के अनुसरण में डिक्री होगी । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी केवल… more »
धारा ३२ : व्यतिक्रम के लिए शास्ति :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३२ : व्यतिक्रम के लिए शास्ति : न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके नाम धारा ३० के अधीन समन निकाला गया है, हाजिर होने के लिए विवश कर सकेगा और उस प्रयोजन के लिए - क) उसकी गिरफ्तारी के लिए वारण्ट निकाल सकेगा ; ख) उसकी… more »
धारा ३१ : साक्षी को समन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३१ : साक्षी को समन : धारा २७, धारा २८ और धारा २९ के उपबन्ध साक्ष्य देने या दस्तावेजों या अन्य भौतिक पदार्थों के पेश करने के लिए समनों को लागू होंगे । INSTALL Android APP * नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या… more »
धारा ३० : प्रकटीकरण और उसके..आदेश करने की शक्ति :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा ३० : प्रकटीकरण और उसके सदृश बातों के लिए आदेश करने की शक्ति : ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए जो विहित की जाएं, न्यायालय किसी भी समय या तो स्वप्रेरणा से या किसी भी पक्षकार के आवेदन पर - क) ऐसे आदेश कर सकेगा जो… more »
धारा २९ : विदेशी समनों की तामील :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २९ : १.(विदेशी समनों की तामील : वे समन और अन्य आदेशिकाएं जो - क) भारत के किसी भी ऐसे भाग में स्थापित किसी सिविल या राजस्व न्यायालय द्वारा जिस पर इस संहिता के उपबन्धों का विस्तार नहीं है; अथवा ख) किसी ऐसे सिविल या राजस्व… more »
धारा २८ : जहां प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में निवास..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २८ : जहां प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में निवास करता है वहां समन की तामील : १) समन अन्य राज्य में तामील किए जाने के लिए ऐसे न्यायालय को और ऐसी रीति से भेजा जा सकेगा जो उस राज्य में प्रवृत्त नियमों द्वारा विहित की जाए । २)… more »
धारा २७ : प्रतिवादियों को समन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ समन और प्रकटीकरण धारा २७ : प्रतिवादियों को समन : जहां कोई वाद सम्यक् रुप से संस्थित किया जा चुका है वहां उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने के लिए समन प्रतिवादी के नाम निकाला जा सकेगा १.(और उसकी तामील ऐसे दिन को, जो वाद के… more »
धारा २६ : वादों का संस्थित किया जाना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ वादों का संस्थित किया जाना धारा २६ : वादों का संस्थित किया जाना : १.(१) हर वाद वादपत्र को उपस्थित करके, या ऐसे अन्य प्रकार से, जैसा विहित किया जाए, संस्थित जाएगा । १.(२) प्रत्येक वादपत्र में तथ्य शपथपत्र द्वारा साबित किए… more »
धारा २५ : वादों आदि के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २५ : १.(वादों आदि के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति : १) किसी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचित करने के पश्चात् और उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हों उनको सुनने के पश्चात् यदि उच्चतम न्यायालय का किसी भी… more »
धारा २४ : अन्तरण और प्रत्याहरण की साधारण शक्ति :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २४ : अन्तरण और प्रत्याहरण की साधारण शक्ति : १) किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात् और उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हों उनको सुनने के पश्चात् या ऐसी सूचना दिए बिना स्वप्रेरणा से, उच्च… more »
धारा २३ : किस न्यायालय में आवेदन किया जाए :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २३ : किस न्यायालय में आवेदन किया जाए : १) जहां अधिकारिता रखने वाले कई न्यायालय एक ही अपील न्यायालय के अधीनस्थ है वहां धारा २२ के अधीन आवेदन अपील न्यायालय में किया जाएगा । २) जहां ऐसे न्यायालय विभिन्न अपील न्यायालयों के… more »
धारा २२ : जो वाद एक से अधिक न्यायालयों में संस्थित..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २२ : जो वाद एक से अधिक न्यायालयों में संस्थित किए जा सकते है उनको अन्तरित करने की शक्ति : जहां कोई वाद दो या अधिक न्यायालयों में से किसी एक में संस्थित किया जा सकता है और ऐसे न्यायालयों में से किसी एक में संस्थित किया… more »
धारा २१-क : वाद लाने के स्थान के बारे में आक्षेप पर..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २१-क : वाद लाने के स्थान के बारे में आक्षेप पर डिक्री को अपास्त करने के लिए वाद का वर्जन : उसी हक के अधीन मुकदमा करने वाले उन्हीं पक्षकारों के बीच या ऐसे पक्षकारों के बीच जिनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन वे या उनमें से… more »
धारा २१ : अधिकारिता के बारे में आक्षेप :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २१ : अधिकारिता के बारे में आक्षेप : १.(१) वाद लाने के स्थान के सम्बन्ध में कोई भी आक्षेप किसी भी अपील या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक अनुज्ञात नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा आक्षेप प्रथम बार के न्यायालय में यथासंभव… more »
धारा २० : अन्य वाद वहां संस्थित किए जा सकेंगे जहां..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २० : अन्य वाद वहां संस्थित किए जा सकेंगे जहां प्रतिवादी निवास करते है या वाद-हेतुक पैदा होता है : पूर्वोक्त परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, हर वाद ऐसे न्यायालय में संस्थित किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर… more »
धारा १९ : शरीर या जंगम सम्पत्ति के प्रति किए गए दोषों..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १९ : शरीर या जंगम सम्पत्ति के प्रति किए गए दोषों के लिए प्रतिकर के लिए वाद : जहां वाद शरीर या जंगम सम्पत्ति के प्रति किए गए दोष के लिए प्रतिकर के लिए है वहां यदि दोष एक न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर… more »
धारा १८ : जहां न्यायालयों की अधिकारिता की स्थानीय..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा १८ : जहां न्यायालयों की अधिकारिता की स्थानीय सीमाएं अनिश्चित है वहां वाद के संस्थित किए जाने का स्थान : १) जहां यह अभिकथन किया जाता है कि यह अनिश्चित है कि कोई स्थावर सम्पत्ति दो या अधिक न्यायालयों में से किस न्यायालय की… more »