धारा १८ : नियम बनाने की शक्ति :
नागरिकता अधिनियम १९५५
धारा १८ :
नियम बनाने की शक्ति :
(१) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी। (२) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित के लिए उपबन्ध कर सकेंगे -
(क) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत होने के लिए अपेक्षित या प्राधिकृत किसी बात का रजिस्ट्रीकरण तथा ऐसे रजिस्ट्रीकरण के बारे में शर्ते और निर्बन्धन;
१.(कक) वह प्ररूप और रीति, जिसमें धारा ४ की उपधारा (१) के अधीन कोई घोषणा की जाएगी;)
(ख) वे प्ररूप जो इस अधिनियम के अधीन उपयोग में लाए जाएंगे और वे रजिस्टर जो इस अधिनियम के अधीन रखे जाएंगे;
(ग) इस अधिनियम के अधीन राजनिष्ठा की शपथ दिलाना और लेना और वह समय जिसके अन्दर और वह रीति जिसमें ऐसी शपथ ली जाएंगी और अभिलिखित की जाएंगी;
(घ) किसी व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के अधीन दिए जाने के लिए, अपेक्षित या प्राधिकृत किसी सूचना का दिया जाना;
(ङ) इस अधिनियम के अधीन नागरिकता से वंचित किए गए व्यक्तियों के रजिस्ट्रीकरण का रद्दकरण और उनसे सम्बद्ध देशीयकरण के प्रमाणपत्रों का रद्दकरण और संशोधन और उन प्रयोजनों के लिए ऐसे प्रमाणपत्रों का परिदत्त किया जाना;
२.(ङङ) वह रीति जिससे और वह प्ररूप जिसमें तथा वह प्राधिकारी जिसको धारा ६क की उपधारा (६) के खंड (क) और (ख) में निर्दिष्ट घोषणाएं प्रस्तुत की जाएंगी और ऐसी घोषणाओं से सम्बन्धित अन्य विषय);
६.(डडझ) धारा ६ख की उपधारा (१) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र या देशीयकरण प्रमाणपत्र अनुदत करने की शर्ते, निर्वाचन और रीति ;)
३.(ङङक) ऐसी शर्ते और रीति जिनके अध्यधीन किसी व्यक्ति को धारा ७क की उपधारा (१) के अधीन भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक के रूप में रजिस्ट्रीकृत किया जा सकेगा;
(ङङख) धारा ७ग की उपधारा (१) के अधीन भारत के विदेशी नागरिक के कार्ड के त्यजन की घोषणाएं करने की रीति;)
(च) भारत के बाहर पैदा होने वाले या मरने वाले किसी वर्ग या अभिवर्णन के व्यक्तियों के जन्मों और मृत्युओं का भारतीय कौन्सलेटों में रजिस्ट्रीकरण;
(छ) इस अधिनियम के अधीन के आवेदनों, रजिस्ट्रीकरणों, घोषणाओं और प्रमाणपत्रों के सम्बन्ध में, राजनिष्ठा की शपथ लेने के सम्बन्ध में और दस्तावेजों की प्रमाणित या अन्य प्रतियों के प्रदाय के सम्बन्ध में फीसों का उदग्रहण और संग्रहण;
(ज) किसी अन्य देश की नागरिकता के अर्जन के प्रश्न को अवधारित करने के लिए प्राधिकरी, वह प्रक्रिया जिसका अनुसरण ऐसे प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा और ऐसे मामलों से सम्बद्ध साक्ष्य के नियम;
(झ) वह प्रक्रिया जिसका अनुसरण धारा १० के अधीन नियुक्त की गई जांच समितियों द्वारा किया जाएगा और ऐसी समितियों को सिविल न्यायालयों की शक्तियों, अधिकारों और विशेषाधिकारों में से किसी का प्रदाय;
४.(झक) धारा १४क की उपधारा (५) के अधीन भारत के नागरिक के अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया;)
(ञ) वह रीति जिसमें पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया जा सकेगा और वह प्रक्रिया जिसका अनुसरण ऐसे आवेदनों को निपटाने में केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाएगा; तथा
(ट) कोई अन्य विषय जो इस अधिनियम के अधीन विहित किया जाना है या किया जाए।
(३) इस धारा के अधीन कोई नियम बनाने में केन्द्रीय सरकार यह उपबन्ध कर सकेगी कि उसका भंग जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा:
४.(परंतु यह कि उपधारा (२) के खंड (झक) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के संबंध में बनाया गया कोई नियम यह उपबंध कर सकेगा कि उसका कोई भंग ऐसी अवधि के करावास से, जो तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दंडनीय होगा।)
५.(४) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।)
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१.२००४ के अधिनियम सं० ६ की धारा १५ द्वारा अंतःस्थापित ।
२.१९८५ के अधिनियम सं० ६५ की धारा ३ द्वारा (७-१२-१९८५ से) अंत:स्थापित।
३.२०१५ के अधिनियम सं० १ की धारा द्वारा अंत:स्थापित ।
४.२००४ के अधिनियम १०६ की धारा १५ द्वारा अन्तःस्थापित।
५.१९८६ के अधिनियम सं० ४ की धारा और अनुसूची द्वारा (१५-५-१९८६ मे) प्रतिस्थापित।
६. २०१९ के अधिनियम सं. ४७ की धारा ५ द्वारा (१०-०१-२०२० से) अंत:स्थापित ।
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