भारत का संविधान :
अनुच्छेद २२७ :
सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति ।
१.(१) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायलयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा )
२) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय -
क) ऐसे न्यायालयों से विवरणी मंगा सकेगा ;
्ख) ऐसे न्यायालयों की पध्दती और कार्यवाहियों के विनियमन के लिए साधारण नियम और प्ररूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा; और
ग)किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्ररूप विहित कर सकेगा ।
३) उच्च न्यायालय उन फीसों की सारीणियां भी स्थिर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यावसाय करने वाले अटनियों, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होंगी :
परंतु खंड (२) या खंड (३) के अधीन बनाए गए कोई नियम, विहित किए गए कोई प्ररूप या स्थिर की गई कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिए राज्यपाल से पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी ।
४)इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियां देने वाली नहीं समझी जाएगी ।
२.( * * * * *)
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१.खंड (१) संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ४० द्वारा (१-२-१९७७ से) और तत्पशचात् संविधान (चवालीसवां संशोधन )अधिनियम, १९७८ की धारा ३१ द्वारा (२०-६-१९७९ से ) प्रतिस्थापित होकर उपरोक्त रूप में आया ।
२.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ४० द्वारा (१-२-१९७७ से) खंड (५) अंत:स्थापित किया गया और उसका संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३१ द्वारा (२०-६-१९७९ से ) लोप किया गया ।
#Indian Constitution in Hindi article 227.
#Constitution of India in hindi article 227.
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