सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
नियम ९ :
कुसंयोजन और असंयोजन :
कोई भी वाद पक्षकारों के कुसंयोजन या असंयोजन के कारण विफल नहीं होगा और न्यायालय हर वाद में विवादग्रस्त विषय का निपटारा वहां तक कर सकेगा जहां तक उन पक्षकारों के, जो उसके वस्तुत: समक्ष है, अधिकारों और हितों को सम्बन्ध है :
१.(परन्तु इस नियम की कोई बात किसी आवश्यक पक्षकार के असंयोजन को लागू नहीं होगी ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ५२ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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