सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा १० :
वाद का रोक दिया जाना :
कोई न्यायालय ऐसे किसी भी वाद के विचारण में जिसमें विवाद्य-विषय उसी के अधीन मुकदमा करने वाले किन्हीं पक्षकारों के बीच के या ऐसे पक्षकारों के बीच के, जिनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन वे या उनमें से कोई दावा करते है, किसी पूर्वतन संस्थित वाद में भी प्रत्यक्षत: और सारत: विवाद्य है, आगे कार्यवाही नहीं करेगा जहां ऐसा वाद उसी न्यायालय में या १.(भारत) में के किसी अन्य ऐसे न्यायालय में, जो दावा किया गया अनुतोष देने की अधिकारिता रखता है या या १.(भारत) की सीमाओं के परे वाले किसी ऐसे न्यायालय में, जो २.(केन्द्रीय सरकार ३.(***) द्वारा स्थापित किया गया है या चालू रखा गया है और, वैसी ही अधिकारिता रखता है, या ४.(उच्चतम न्यायालय) के समक्ष लम्बित है ।
स्पष्टीकरण :
विदेशी न्यायालय में किसी वाद का लम्बित होना उसी वाद-हेतुक पर आधारित किसी वाद का विचारण करने से १.(भारत) में के न्यायालयों को प्रवारित नहीं करता ।
-------
१. १९५१ के अधिनियम सं. २ की धारा ३ द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, १९३७ द्वारा सपरिषद् गवर्नर जनरल के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम और अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, १९४८ द्वारा या क्रूाउन रिप्रेजेन्टेटिव शब्दों का लोप किया गया ।
४. विधि अनुकूलन आदेश, १९५० द्वारा हिज मैजेस्टी इन काउन्सिल के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
INSTALL Android APP
* नोट (सूचना) : इस वेबसाइट पर सामग्री या जानकारी केवल शिक्षा या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए है, हालांकि इसे कहीं भी कानूनी कार्रवाई के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, और प्रकाशक या वेबसाइट मालिक इसमें किसी भी त्रुटि के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, अगर कोई त्रुटि मिलती है तो गलतियों को सही करने के प्रयास किए जाएंगे ।