सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा २१ :
अधिकारिता के बारे में आक्षेप :
१.(१) वाद लाने के स्थान के सम्बन्ध में कोई भी आक्षेप किसी भी अपील या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक अनुज्ञात नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा आक्षेप प्रथम बार के न्यायालय में यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर और उन सभी मामलों में, जिनमें विवाद्यक स्थिर किए जाते है, ऐसे स्थिरीकरण के समय या उसके पहले न किया गया हो और जब तक कि उसके परिणामस्वरुप न्याय की निष्फलता न हुई हो ।
२.(२) किसी न्यायालय की अधिकारिता की धन-सम्बन्धी परिसीमा के आधार पर उसकी सक्षमता के बारे में कोई आक्षेप किसी अपील या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक अनुज्ञा नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा आक्षेप प्रथम बार के न्यायालय में यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर और उन सभी मामलों में, जिनमें विवाद्यक स्थिर किए जाते है, ऐसे स्थिरीकरण के समय या उसके पहले न किया गया हो और जब तक कि उसके परिणामस्वरुप न्याय की निष्फलता न हुई हो ।
३) किसी निष्पादन-न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के आधार पर उसकी सक्षमता के बारे में कोई आक्षेप अपील या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक अनुज्ञा नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा आक्षेप निष्पादन-न्यायालय में यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर न किया गया हो और जब तक कि उसके परिणामस्वरुप न्याय की निष्फलता न हुई हो ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ८ द्वारा (१-२-१९७७ से) धारा २१ उसकी उपधारा (१) के रुप में पुन:संख्यांकित ।
२. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ८ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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