सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा ५८ :
निरोध और छोडा जाना :
१) डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार में निरुद्ध हर व्यक्ति, -
क) जहां डिक्री १.(२.(पांच हजार रुपए)) से अधिक धनराशि का संदाय करने के लिए है १.(वहां तीन मास से अनधिक अवधि के लिए, और)
३.(ख) जहां डिक्री दो हजार रुपए से अधिक किन्तु पांच हजार रुपए से अनधिक धनराशि का संदाय करने के लिए है वहां छह सप्ताह से अनधिक अवधि के लिए),
डिक्री के निष्पादन के लिए निरुद्ध किया जाएगा ।
४.(१-क) शंकाओं को दूर करने के लिए जाता है कि जहां डिक्री की कुल रकम ५.(दो हजार रुपए) से अधिक नहीं है वहां धन के संदाय की डिक्री के निष्पादन में निर्णीत-ऋणी को सिविल कारागार में निरुद्ध करने के लिए कोई आदेश नहीं किया जाएगा ।)
२) इस धारा के अधीन निरोध में से छोडा गया निर्णीत-ऋणी अपने छोडे जाने के कारण ही अपने ऋण से उन्मोचित नहीं हो जाएगा, किन्तु वह जिस डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार में निरुद्ध किया गया था, उसके निष्पादन में पुन: गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा ।
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा २२ द्वारा (१-२-१९७७ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९९९ के अधिनियम सं. ४६ की धारा ५ द्वारा (१-७-२००२ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९९९ के अधिनियम सं. ४६ की धारा ५ द्वारा (१-७-२००२ से) खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा २२ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
५. १९९९ के अधिनियम सं. ४६ की धारा ५ द्वारा (१-७-२००२ से) पांच सौ रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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