धारा ८० : सूचना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा ८० :
सूचना :
१.(१)२.(उसके सिवाय जैसा उपधारा (२) में उपबन्धित है, ३.(सरकार के (जिसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार भी आती है) विरुद्ध) या ऐसे कार्य की बाबत जिसके बारे में यह तात्पर्यित है कि वह ऐसे लोक अधिकारी द्वारा अपनी पदीय हैसियत में किया गया है, लोक अधिकारी के विरुद्ध ६.(कोई वाद तब तक) ३.(संस्थित नहीं किया जाएगा) जब तक वाद-हेतुक का, वादी के नाम, वर्णन और निवास-स्थान का और जिस अनुतोष का वह दावा करता है उसका, कथन करने वाली लिखित सूचना -
क) केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध वाद की दशा में, ४.(वहां के सिवाय जहां वह रेल से सम्बन्धित है), उस सरकार के सचिव को ;
५.(ख) केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध वाद की दशा में, जहां वह रेल से संबंधित है, उस रेल के प्रधान प्रबन्धक को ;)
६.(खख) जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार की सरकार के विरुद्ध वाद की दशा में, उस सरकार के मुख्य सचिव को या उस सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी को ;)
ग) ७.(किसी अन्य राज्य सरकार) के विरुद्ध वाद की दशा में, उस सरकार के सचिव को या जिले के कलक्टर को, ८.(*)
९.(*)
१०.(परिदत्त किए जाने या उसके कार्यालय में छोडे जाने के,) और लोक अधिकारी की दशा में उसे परिदत्त किए जाने या उसके कार्यालय में छोडे जाने के पश्चात् दो मास का अवसान न हो गया हो, और वादपत्र में यह कथन अन्तर्विष्ट होगा कि ऐसी सूचना ऐसे परिदत्त कर दी गई है या छोड दी गई है ।
११.(२) सरकार के (जिसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार भी आती है), विरुद्ध या ऐसे कार्य की बाबत जिसके बारे में यह तात्पर्यित है कि वह ऐसे लोक अधिकारी द्वारा अपनी पदीय हैसियत में किया गया है, लोक अधिकारी के विरुद्ध, कोई अत्यावश्यक या तुरन्त अनुतोष अभिप्राप्त करने के लिए कोई वाद, न्यायालय की इजाजत से, उपधारा (१) द्वारा यथाअपेक्षित किसी सूचना की तामील किए बिना, संस्थित किया जं सकेगा ; किन्तु न्यायालय वाद में अनुतोष, चाहे अन्तरितम या अन्यथा, यथास्थिति, सरकार या लोक अधिकारी को वाद में आवेदित अनुतोष की बाबत हेतुक दर्शित करने का उचित अवसर देने के पश्चात् ही प्रदान करेगा, अन्यथा नहीं :
परन्तु यदि न्यायालय का पक्षकारों को सुनने के पश्चात्, यह समाधान हो जाता है कि वाद में कोई अत्यावश्यक या तुरन्त अनुतोष प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है तो वह वाद-पत्र को वापस कर देगा कि उसे उपधारा (१) की अपेक्षाओं का पालन करने के पश्चात् प्रस्तुत किया जाए ।
३) सरकार के विरुद्ध या ऐसे कार्य की बाबत जिसके बारे में यह तात्पर्यित है कि वह ऐसे लोक अधिकारी द्वारा अपनी पदीय हैसियत में किया गया है, लोक अधिकारी के विरुद्ध संस्थित किया गया कोई वाद केवल इस कारण खारिज नहीं किया जाएगा कि उपधारा (१) में निर्दिष्ट सूचना में कोई त्रुटि या दोष है, यदि ऐसी सूचना में -
क) वादी का नाम, वर्णन और निवास-स्थान इस प्रकार दिया गया है जो सूचना की तामील करने वाले व्यक्ति की शनाख्त करने में समुचित प्राधिकारी या लोक अधिकारी को समर्थ करे और ऐसी सूचना उपधारा (१) में विनिर्दिष्ट समुचित प्राधिकारी के कार्यालय में परिदत्त कर दी गई है या छोड दी गई है, तथा
ख) वाद-हेतुक और वादी द्वारा दावा किया गया अनुतोष सारत: उपदर्शित किया गया है ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा २७ द्वारा (१-२-१९७७ से) धारा ८० को उसकी उपधारा (१) के रुप में पुन: संख्यांकित किया गया ।
२. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा २७ द्वारा (१-२-१९७७ से) कोई वाद तब तक संस्थित नहीं किया जाएगा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९६३ के अधिनियम सं. २६ की धारा ३ द्वारा (५-८-१९६४ से) सरकार के विरुद्ध संस्थित नहीं किया जाएगा के स्थान पर प्रतिस्थापित । सरकार के विरुद्ध संस्थित नहीं किया जाएगा यह शब्द विधि अनुकूलन आदेश, १९४८ द्वारा क्राऊन के विरुद्ध संस्थित शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९४८ के अधिनियम सं. ६ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
५. १९४८ के अधिनियम सं. ६ की धारा २ द्वारा खण्ड (कक) अन्त:स्थापित और भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम और अध्यादेशों का अनुकूलन) आदेश, १९४८ द्वारा खण्ड (ख) के रुप में पुन: संख्यांकित तथा पूर्ववर्ती खंड (ख) का लोप किया गया ।
६. १९६३ के अधिनियम सं. २६ की धारा ३ द्वारा (५-६-१९६४ से) अन्त:स्थापित ।
७. १९६३ के अधिनियम सं. २६ की धारा ३ द्वारा (५-६-१९६४ से) राज्य सरकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
८. भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियमयों और अध्यादेशों का अनुकूलन) आदेश १९४८ द्वारा और शब्द का लोप किया गया ।
९. भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियमों और अध्यादेशों का अनुकूलन) आदेश, १९४८ द्वारा खण्ड (घ) का लोप किया गया ।
१०. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, १९३७ द्वारा सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन कांउसिल की दशा में, स्थानीय सरकार के सचिव को या जिले के कलक्टर को परिदत्त किए जाने या उसके कार्यालय में छोडे जाने के के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
११. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा २७ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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