सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
भाग ५
विशेष कार्यवाहियां
माध्यस्थम्
धारा ८९ :
१.(न्यायालय के बाहर विवादों का निपटारा :
१) जहां न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि किसी समझौते के ऐसे तत्व विद्यमान है, जो पक्षकारों को स्वीकार्य हो सकते है वहां न्यायालय समझौते के निबंधन बनाएगा और उन्हें पक्षकारों को उनकी टीका-टिप्पणी के लिए देगा और पक्षकारों की टीका-टिप्पणी प्राप्त करने के पश्चात् न्यायालय संभव समझौते के निबंधन पुन: बना सकेगा और उन्हें :-
क) माध्यस्थम् ;
ख) सुलह ;
ग) न्यायिक समझौते जिसके अन्तर्गत लोक अदालत के माध्यम से समझौता भी है ; या
घ) बीच-बचाव के लिए,
निर्दिष्ट करेगा ।
२) जहां कोई विवाद -
क) माध्यस्थम् या सुलह के लिए निर्दिष्ट किया गया है वहां माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम १९९६ (१९९६ का २६) के उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो माध्यस्थम् या सुलह के लिए कार्यवाहियां उस अधिनियम के उपबंधों के अधीन समझौते के लिए निर्दिष्ट की गई थीं ;
ख) लोक अदालत को निर्दिष्ट किया गया है, वहां न्यायालय उसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, १९८७ (१९८७ का ३९) की धारा २० की उपधारा (१) के उपबंधों के अनुसार लोक अदालत को निर्दिष्ट करेगा और उस अधिनियम के सभी अन्य उपबंध लोक अदालत को इस प्रकार निर्दिष्ट किए गए विवाद के संबंध में लागू होंगे ;
ग) न्यायिक समझौता के लिए निर्दिष्ट किया गया है, वहां न्यायालय उसे किसी उपयुक्त संस्था या व्यक्ति को निर्दिष्ट करेगा और ऐसी संस्था या व्यक्ति को लोक अदालत समझा जाएगा तथा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, १९८७ (१९८७ का ३९) के सभी उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो वह विवाद लोक अदालत को उस अधिनियम के उपबंधों के अधीन निर्दिष्ट किया गया था ;
घ) बीच-बचाव के लिए निर्दिष्ट किया गया है, वहां न्यायालय पक्षकारों के बीच समझौता कराएगा और ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जो विहित की जाए ।)
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१. १९४० के अधिनियम सं. १० की धारा ४९ और अनुसूची द्वारा धारा ८९ निरसित और १९९९ के अधिनियम सं. ४६ की धारा ७ द्वारा (१-७-२००२ से) अन्त:स्थापित ।
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