दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय १० :
घ - स्थावर संपत्ति के बारें में विवाद :
धारा १४७ :
भूमि या जल के उपयोग के अधिकार से संबद्ध विवाद :
१)जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट का, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य इत्तिला पर, समाधान हो जाता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल के उपयोग के किसी अभिकथित अधिकार के बारे में, चाहें ऐसे अधिकार का दावा सुखाचार के रुप में किया गया हो या अन्यथा, विवाद वर्तमान है जिससे परिशांति भंग होनी संभाव्य है, तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधारों का कथन करते हुए और विवाद से संबद्ध पक्षकारों से यह अपेक्षा करते हुए लिखित आदेश दे सकता है कि वे विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वयं या प्लीडर द्वारा उनके न्यायालय में हाजिर हों और अपने-अपने दावों का लिखित कथन पेश करें ।
स्पष्टीकरण :
भूमि या जल पद का वही अर्थ होगा जो धारा १४५ की उपधारा (२) में दिया गया है ।
२)मजिस्ट्रेट तब इस प्रकार पेश किए गए कथनों का परिशीलन करेगा, पक्षकारों को सुनेगा, ऐसा सब साक्ष्य लेगा जो उनके द्वारा पेश किया जाए, ऐसे साक्ष्य के प्रभाव पर विचार करेगा, ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई हो, लेगा जो वह आवश्यक समझे और, यदि संभव हो तो विनिश्चय करेगा कि ऐसा अधिकार वर्तमान है; और ऐसी जाँच के मामलें में धारा १४५ के उपबंध यावत्शक्य लागू होंगे ।
३)यदि उस मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि ऐसे अधिकार वर्तमान है तो वह ऐसे अधिकार के प्रयोग में किसी भी हस्तक्षेप का प्रतिषेध करने का और यथोचित मामले में ऐसे किसी अधिकार के प्रयोग में किसी बाधा को हटाने का भी आदेश दे सकता है :
परन्तु जहाँ ऐसे अधिकारा का प्रयोग वर्ष में हर समय किया जा सकता है वहाँ जब तक ऐसे अधिकार का प्रयोग उपधारा (१) के अधीन पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य इत्तिला की, जिसके परिणामस्वरुप जाँच संस्थित की गई है, प्राप्ति के ठिक पहले तीन मास के अन्दर नहीं किया गया है अथवा जहाँ ऐसे अधिकार का प्रयोग विशिष्ट मौसमों में हो या विशिष्ट अवसरों पर ही किया जा सकता है वहाँ जब तक ऐसे अधिकार का प्रयोग ऐसी प्राप्ती के पूर्व के ऐसे मौसमों में से अंतिम मौसम के दौरान या ऐसे अवसरों में से अंतिम अवसर पर नहीं किया गया है, ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जाएगा ।
४)जब धारा १४५ की उपधारा (१) के अधीन प्रारंभ की गई किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह मालूम पडता है कि विवाद भूमि या जल के उपयोग के किसी अभिकथित अधिकार के बारें में है, तो वह, अपने कारण अभिलिखित करने के पश्चात् कार्यवाही को ऐसे चालू रख सकता है, मानो वह उपधारा (१) के अधीन प्रारंभ की गई हो;
और जब उपधारा (१) के अधीन प्रारंभ की गई किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह मालूम पडता है कि विवाद के संबंध में धारा १४५ के अधीन कार्यवाही की जानी चाहिए तो वह अपने कारण अभिलिखित करने के पश्चात् कार्यवाही को ऐसे चालू रख सकता है, मानो वह धारा १४५ कि उपधारा (१) के अधीन प्रारंभ कि गई हो ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 147.
section 147 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1973 section 147 in hindi .
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