दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय १४ :
कार्यवाहियाँ शुरु करने के लिए अपेक्षित शर्तें :
धारा १९५ :
लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के लिए और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए लोक-सेवको के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के लिए अभियोजन :
१)कोई न्यायालय -
क)एक) भारतीय दण्ड संहिता, १८६० (१८६० का ४५)की धारा १७२ से धारा १८८ तक की धाराओं के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएँ भी है)अधीन दण्डनीय किसी अपराध का, अथवा
दो)ऐसे अपराध के किसी दुष्प्रेरण या ऐसा अपराध करने के प्रयत्न का, अथवा
तीन)ऐसा अपराध करने के लिए किसी आपराधिक षडयंत्र का,
संज्ञान संबंद्ध लोक-सेवक के, या किसी अन्य ऐसे लोक-सेवक के, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, लिखित परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं;
ख)एक)भारतीय दण्ड संहिता,१८६० (१८६० का ४५) की निम्नलिखित धाराओं अर्थात् १९३ से १९६ (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएँ भी है), १९९, २००, २०५ से २११ (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएँ भी है) और धारा २२८ में से किन्हीं के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का, जब ऐसे अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में या उसके संबंध में किया गया है, अथवा
दो) उसी संहिता की धारा ४६३ में वर्णित या धारा ४७१, ४७५ या धारा ४७६ के अधीन दण्डनीय अपराध का, जब ऐसे अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में पेश की गई साक्ष्य में दी गई किसी दस्तावेज के बारे में किया गया है, अथवा
तीन) उपखण्ड (एक) या (दो) में विनिर्दिष्ट किसी अपराध को करने के लिए आपराधिक षडयंत्र या उसे करने के प्रयत्न या उसके दुष्प्रेरण के अपराध का,
संज्ञान ऐसे न्यायालय के ऐसे अधिकारी के, जिसे वह न्यायालय इस निमित्त लिखित रुप में प्राधिकृत करे, या किसी अन्य न्यायालय के, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है, लिखित परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहींं ।
२)जहाँ किसी लोक-सेवक द्वारा उपधारा (१) के खण्ड (क) के अधीन कोई परिवाद किया गया है वहाँ ऐसा कोई प्राधिकारी, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, उस परिवाद को वापस लेने का आदेश दे सकता है और ऐसे आदेश की प्रति न्यायालय को भेजेगा; और न्यायालय द्वारा उसकी प्राप्ती पर उस परिवाद के संबंध में आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी :
परन्तु ऐसे वापस लेने का कोई आदेश उस दशा में नहीं दिया जाएगा जिसमें विचारण प्रथम बार के न्यायालय में समाप्त हो चुका है ।
३)उपधारा (१) के खण्ड (ख) में न्यायालय शब्द से कोई सिविल, राजस्व या दण्ड न्यायालय अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत किसी केन्द्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन गठित कोई अधिकरण भी है यदि वह उस अधिनियम द्वारा इस धारा में प्रयोजनार्थ न्यायालय घोषित किया गया है ।
४) उपधारा (१) के खण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिए कोई न्यायालय उस न्यायालय के जिसमें ऐसे पूर्वकथित न्यायालय की अपीलनीय डिक्रियों या दण्डादेशों की साधारणतया अपील होती है, अधीनस्थ समझा जाएगा या ऐसा सिविल न्यायालय, जिसकी डिक्रियों की साधारणतया कोई अपील नहीं होती है, उस मामूली आरंभिक सिविल अधिकारिता वाले प्रधान न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर ऐसा सिविल न्यायालय स्थित है :
परन्तु -
क) जहाँ अपीलें एक से अधिक न्यायालय में होती है वहाँ अपर अधिकारिता वाला अपील न्यायालय वह न्यायालय होगा जिसके अधीनस्थ ऐसा न्यायालय समझा जाएगा;
ख)जहाँ अपीलें सिविल न्यायालय में और राजस्व न्यायालय में भी होती है वहाँ ऐसा न्यायालय उस मामले या कार्यवाही के स्वरुप के अनुसार, जिसके संबंध में उस अपराध का किया जाना अभिकथित है, सिविल या राजस्व न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 195.
section 195 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1973 section 195 in hindi .
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