दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय ३० :
निर्देश (संकेत / उल्लेख / संदर्भ) और पुनरिक्षण (संशोधन / सुधार / दोहराना) :
धारा ३९५ :
उच्च न्यायालय को निर्देश :
१)जहाँ किसी न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लंबित मामले में किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम की अथवा किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम में अंतर्विष्ट किसी उपबंध की विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न अन्तग्र्रस्त है, जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है, और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम, अध्यादेश, विनियम या उपबंध अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील है किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है, या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है वहाँ न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को उल्लिखित करते हुए मामले का कथन तैयार करेगा और उसे उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा में विनियम से साधारण खण्ड अधिनियम, १८९७ (१८९७ का १०) में किसी राज्य के साधारण खण्ड अधिनियम में यथापरिभाषित कोई विनियम अभिप्रेत है ।
२)यदि सेशन न्यायालय या महानगर मजिस्ट्रेट अपने समक्ष लंबित किसी मामले में, जिसे उपधारा (१) के उपबंध लागू नहीं होते है, ठीक समझता है तो वह, ऐसे मामले की सुनवाई में उठने वाले किसी विधि-प्रश्न को उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित कर सकता है ।
३)कोई न्यायालय, जो उच्च न्यायालय को उपधारा (१) या उपधारा (२) के अधीन निर्देश करता है, उस पर उच्च न्यायालय का विनिश्चय होने तक, अभियुक्त को जेल के सुपुर्द कर सकता है या अपेक्षा किए जाने पर हाजिर होने के लिए जमानत पर छोड सकता है ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 395.
section 395 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1973 section 395 in hindi .
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