धारा ४३८ : गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर ...
दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय ३३ :
जमानत और बंधपत्रों के बारे में उपबंध :
धारा ४३८ :
गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निदेश :
१)जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अधीन निदेश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है, और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड दिया जाए ।
उपरोक्त उपधारा (१) के स्थान पर निम्नलिखित उपधाराएँ प्रतिस्थापित किन्तु अब तक प्रवृत्त नहीं :
१)जहाँ किसी व्यक्ति के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह उस धारा के अधीन निदेश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकेगा कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड दिया जाए, और वह न्यायालय, अन्य बातों के साथ, निम्नलिखित बातों को ध्यान कें रखते हुए, अर्थात -
एक)अभियोग की प्रकृति और गंभीरता;
दो)आवेदक का पूर्ववृत्त जिसमें यह तथ्य भी सम्मिलित है कि क्या उसने पूर्व में किसी संज्ञेय अपराध के संबंध में किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास भोगा है;
तीन)न्याय से भागने की आवेदक की संभाव्यता; और
चार)जहाँ अभियोग आवेदक को इस प्रकार गिरफ्तार कराकर उसे क्षति पहुँचाने या उसका अपमान करने के उद्देश्य से लगाया गया है,
वहाँ या तो तत्काल आवेदन अस्वीकार करेगा या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश देगा :
परन्तु यह कि जहाँ, यथास्थिति, उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ने इस उपधारा के अधीन कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया है या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए आवेदन को अस्वीकार कर दिया है, वहाँ किसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी इस बात के लिए स्वतंत्र होगा कि ऐसे आवेदन में आशंकित अभियोग आधार पर आवेदक को वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर ले ।
१-क) जहाँ न्यायालय उपधारा (१) के अधीन अंतरिम आदेश मंजूर करता है, वहाँ वह तत्काल एक सूचना, जो सात दिवस से अन्यून की सूचना न होगी, के साथ ऐसे आदेश की एग प्रति न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम रुप से सुनवाई के समय लोक अभियोजक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने की दृष्टि से, लोक अभियोजक और पुलिस अधिक्षक को भिजवाएगा ।
१-ख) यदि लोक अभियोजक द्वारा न्यायालय को आवेदन किया जाने पर न्यायालय यह विचार करता है कि न्याय के हित में ऐसी उपस्थिति आवश्यक है तो न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम सुनवाई और अंतिम आदेश पारित करते समय अग्रिम जमानत चाहने वाले आवेदक की उपस्थिति बाध्यकर होगी ।
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२)जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (१) के अधीन निदेश देता है तब वह उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्तें, जो वह ठिक समझे, सम्मिलित कर सकता है जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित भी है -
एक)यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और जब अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा;
दो) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा;
तीन) यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोडेगा;
चार)ऐसी अन्य शर्तें जो धारा ४३७ की उपधारा (३) के अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती है, मानो उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की गई है ।
३)यदि तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे जमानत पर छोड दिया जाएगा तथा यदि ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारण्ट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (१) के अधीन न्यायालय के निदेश के अनुरुप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा ।
१.(४) भारतीय दण्ड संहिता के धारा ३७६ की उपधारा (३) के अधीन या धारा ३७६ कख या धारा ३७६ घक तथा धारा ३७६ घख के अधीन अपराध करने का किसी व्यक्ती को आरोपित किया हो उस व्यक्तिको गिरफ्तार करेने के सम्बन्ध में यह धारा लागू नहीं होगी ।)
राज्य संशोधन :
उत्तरप्रदेश :
धारा ४३८ विलोपित कि जाएगी ।
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१. दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, २०१८ (क्र. २२ सन २०१८) की धारा २२ द्वारा अंत:स्थापित.(भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग-२, खंड १, दिनांक ११-८-२०१८) पर अंग्रेजी में प्रकाशित ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 438.
section 438 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1973 section 438 in hindi .
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महोदय, क्या ऐसा भी हो सकता है कि जो प्रकरण माननिय न्यायालय में विचाराधीन है उसी प्रकरण में कुछ लोगो की गलत शिकायत के आधार पर FIR हो सकती हैं। उचित परामर्श प्रदान करे