धारा ४० : राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति :
ग्राम न्यायालय अधिनियम २००८
धारा ४० :
राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति :
१) राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।
२) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-
क) धारा १७ की उपधारा (२) के अधीन ग्राम न्यायालयों के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते ;
ख) धारा २७ की उपधारा (२) के अधीन सुलहकारों को संदेय बैठक फीस और अन्य भत्ते तथा उनके नियोजन के अन्य निबंधन और शर्ते ।
३) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, राज्य विधान- मंडल के समक्ष रखा जाएगा ।
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पहली अनुसूची :
(धारा १२ और धारा १४ देखिए )
भाग १ :
भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५ ) के अधीन अपराध, आदि :
१) ऐसे अपराध जो मृत्युदंड, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय नहीं है;
२) भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५ ) की धारा ३७९, धारा ३८० या धारा ३८१ के अधीन चोरी, जहां चुराई गई संपत्ति का मूल्य बीस हजार रूपए से अधिक नहीं है;
३) भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५) की धारा ४११ के अधीन, चुराई गई संपत्ति को प्राप्त करना या प्रतिधारित करना, जहां ऐसी संपत्ति का मूल्य बीस हजार रूपए से अधिक नहीं है;
४) भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५ ) की धारा ४१४ के अधीन, चुराई गई संपत्ति को छूपाने या उसके व्ययन में सहायता करना, जहां ऐसी संपत्ति का मूल्य बीस रूपए से अधिक नहीं है ;
५) भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५ ) की धारा ४५४ और धारा ४५६ के अधीन अपराध ;
६) भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५ ) की धारा ५०४ के अधीन शांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से अपमान और धारा ५०६ के अधीन ऐसा अवधि के, जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय आपराधिक अभित्रास;
७)पूर्वाक्त अपराधों में से किसी का दुष्प्रेरण ;
८) पूर्वाक्त अपराधों में से कोई अपराध करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध हो ।
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भाग २ :
अन्य केन्द्रीय अधिनियमों के अधीन अपराध और अनुतोष :
१)ऐसे किसी कार्य द्वारा गठित कोई अपराध, जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम, १८७१ (१८७१ का १) की धारा २० के अधीन परिवाद किया जा सकेगा ;
२) मजदूरी संदाय अधिनियम, १९३६ (१९३६ का ४);
३) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,१८४८(१८४८ का ११);
४)सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, १९५५(१९५५ का २२);
५) दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) के अध्याय ९ के अधीन पत्नियों, बालकों और माता-पिता के भरण- पोषण के लिए आदेश ;
६) बंधित श्रम पध्दति (उत्सादन ) अधिनियम, १९७६ (१९७६ का १९);
७) समान पारिश्रमिक अधिनियम, १९७६ (१९७६ का २५);
८) घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, २००५ (२००५ का ४३) ;
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भाग ३
राज्य अधिनियमों के अधीन अपराध और अनुतोष
(राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले )
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दूसरी अनुसूची :
(धारा १३ और धारा १४ देखिए )
भाग १ :
ग्राम न्यायालयों की अधिकारिता के भीतर सिविल प्रकृति के वाद :
१)सिविल विवाद ;
क) संपत्ति क्रय करने का अधिकार ;
ख)सामान्य चरागाहों का उपयोग ;
ग)सिंचाई सरणियो से जल लेने का विनियमन और समय;
२)संपत्ति विवाद :
क)ग्राम और फार्म हाऊस (कब्जा ) ;
ख)जलसरणियां;
ग)कुएं या नलकूप से जल लेने का अधिकार ;
३)अन्य विवाद:
क)मजदूरी संदाय अधिनियम, १९३६ (१९३६ का ४) के अधीन दावे ;
ख) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, १९४८ (१९४८ का ११) के अधीन दावे ;
ग)व्यापार संव्यवहार या साहूकारी से उद्भूत धन संबंधी वाद ;
घ) भूमि पर खेती में भागीदारी से उद्भूत विवाद ;
ड) ग्राम पंचायतों के निवासियों द्वारा वन उपज के उपयोग के संबंध में विवाद ।
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भाग २
केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा १४ की उपधारा (१) के अधीन अधिसूचित केन्द्रीय अधियिमों के
अधीन दावे और विवाद
(केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले )
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भाग ३
राज्य सरकार द्वारा धारा १४ की उपधारा (३) के अधीन अधिसूचित राज्य
अधिनियमों के अधीन दावे और विवाद
(राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले )
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