भारतीय साक्ष्य अधिनियम १८७२
अध्याय २ :
उन व्यक्तियों के कथन, जिन्हें साक्षी के रुप में बुलाया नहीं जात सकता :
धारा ३३ :
किसी साक्ष्य में कथित तथ्यों की सत्यता को पश्चात्वर्ती कार्यवाही में साबित करने के लिए उस साक्ष्य की सुसंगति :
वह साक्ष्य, जो किसी साक्षी ने किसी न्यायिक कार्यवाही में, या विधि द्वारा उसे लेने के लिए प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष दिया है, उन तथ्यों की सत्यता को, जो उस साक्ष्य में कथित है, किसी पश्चात्वर्ती न्यायिक कार्यवाही में या उसी न्यायिक कार्यवाही के आगामी प्रक्रम में साबित करने के प्रयोजन के लिए तब सुसंगत है, जबकि वह साक्षी मर गया है या मिल नहीं सकता है या वह साक्ष्य देने के लिए असमर्थ है या प्रतिपक्षी द्वारा उसे पहुँच के बाहर कर दिया गया है अथवा यदि उसकी उपस्थिति इतने विलम्ब या व्यय के बिना, जितान कि मामले की परिस्थितियों में न्यायालय अयुक्तियुक्त (अनुचित) समझता है, अभिप्राप्त नहीं की जा सकती :
परन्तु यह तब जबकि -
वह कार्यवाही उन्हीं पक्षकारों या उनके हित प्रतिनिधियों के बीच में थी,
प्रथम कार्यवाही में प्रतिपक्षी को प्रतिपरीक्षा का अधिकार और अवसर था,
विवाद्य प्रश्न प्रथम कार्यवाही में सारत: वही थे, जो द्वितीय कार्यवाही में है ।
स्पष्टीकरण :
दाण्डिक विचारण या जाँच इस धारा के अर्र्थ के अंतर्गत अभियोजक और अभियुक्त के बीच कार्यवाही समझी जाएगी ।
Indian Evidence Act 1872 hindi section 33, section 33 The Evidence Act 1872 Hindi.
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