भारतीय साक्ष्य अधिनियम १८७२
अध्याय ५ :
दस्तावेजों के बारे में उपधारणाएँ (प्रश्नगत कुछ तथ्यों की सत्यता के बारे में ) :
धारा ९० :
तीस वर्ष पुरानी दस्तावेजों के बारे में उपधारणा :
जहाँ कि कोई दस्तावेज, जिसका तीस वर्ष पुरानी होना तात्पर्यित है या साबित किया गया है, ऐसी किसी अभिरक्षा में से, जिसे न्यायालय उस विशिष्ट मामले में उचित समझता है, पेश की गई है, वहाँ न्यायालय यह उपधारित कर सकेगा कि ऐसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर और उसका हर अन्य भाग, जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तलेख में होना तात्पर्यित है, उस व्यक्ति के हस्तलेख में है, और निष्पादित या अनुप्रमाणित दस्तावेज होने की दशा में यह उपधारित कर सकेगा कि वह उन व्यक्तियों द्वारा सम्यक् रुप से निष्पादित और अनुप्रमाणित की गई थी जिनके द्वारा उसका निष्पादित और अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है ।
स्पष्टीकरण :
दस्तावेजों का उचित अभिरक्षा में होना कहा जाता है, यदि वे ऐसे स्थान में और उस व्यक्ति की देख-रेख में है, जहाँ और जिसके पास वे प्रकृत्या होनी चाहिए, किन्तु कोई भी अभिरक्षा अनुचित नहीं है, यदि यह साबित कर दिया जाए कि अभिरक्षा का उद्गम विधिसम्मत था या यदि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों ऐसी हों, जिनसे ऐसा उद्गम अधिसंभाव्य हो जाता है ।
यह स्पष्टीकरण धारा ८१ को भी लागू है ।
दृष्टांत :
क)ऐ भू-संपत्ति पर दीर्घकाल से कब्जा रखता आया है । वह उस भूमि संबंधी विलेक, जिनसे उस भूमि पर उसका हक दर्शित होता है, अपनी अभिरक्षा में से पेश करता है । यह अभिरक्षा उचित है ।
ख)ऐ उस भू-संपत्ति से संबद्ध विलेक, जिसका वह बंधकदार है, पेश करता है । बंधककर्ता संपत्ति पर कब्जा रखता है, यह अभिरक्षा उचित है ।
ग)बी का संसंगी ऐ, बी के कब्जे वाली भूमि से संबंधित विलेख पेश करता है, जिन्हें बी ने उसके पास सुरक्षित अभिरक्षा के लिए निक्षिप्त किया था । यह अभिरक्षा उचित है ।
राज्य संशोधन :
उत्तर प्रदेश :
विद्यमान धारा, धारा ९० (१) के रुप में, पुनर्संख्यांकित की जाएगी, और
क)शब्द तीस वर्ष के स्थान पर बीस वर्ष प्रतिस्थापित किए जाएँगे, और
ख)अग्रलिखित को नई उपधारा (२) के रुप में जोडा जायेगा, अर्थात -
२) जब कोई दस्तावेज जो उपधारा (१) में विनिर्दिष्ट है, को दस्तावेज के पंजीयन संबंधी विधि के अनुसार पंजीकृत किया गया था और सम्यक् रुप से प्रमाणित उसकी प्रति प्रस्तुत की गई है तो न्यायालय उपधारणा कर सकेगा कि ऐसे दस्तावेज के हस्ताक्षर तथा उसका अन्य प्रत्येक भाग जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति का होना तात्पर्यित है उस व्यक्ति के हस्तलेख में है और उस व्यक्ति द्वारा अनुप्रमाणित है जिसके द्वारा उसका निष्पादित या अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है ।
धारा ९० के पश्चात् ९०-क अंत:स्थापित की जायेगी, अर्थात् :-
धारा ९०-क :
१)जब कोई पंजीकृत दस्तावेज या उसकी विधिवत अनुप्रमाणित प्रति या दस्तावेज की कोई अनुप्रमाणित प्रति जो कि न्यायालय के रेकार्ड का भाग है किसी की अभिरक्षा में से प्रस्तुत की जाती है जिसे न्यायालय किसी विशेष मामलें में उचित समझता है तो न्यायालय यह उपधारणा कर सकेगा कि मूल दस्तावेज उस व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया गया था जिसके द्वारा उसका निष्पादित किया जाना तात्पर्यित है ।
२)कोई दस्तावेज जो किसी वाद का प्रतिरक्षा का आधार है या वादपत्र में या लिखित कथन में जिस पर विश्वास किया गया है, के बाबत उक्त उपधारणा नहीं की जाएगी ।
धारा ९० की उपधारा (१) में दिया गया स्पष्टीकरण इस धारा को भी लागू होगा ।
Indian Evidence Act 1872 hindi section 90, section 90 The Evidence Act 1872 Hindi.
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