धारा १४९ : पर-व्यक्ति जोखिमों की बाबत बीमाकृत व्यक्ति..
मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा १४९ :
पर-व्यक्ति जोखिमों की बाबत बीमाकृत व्यक्तियों के विरूध्द हुए निर्णयों और अधिनिर्णयों की तुष्टि करने का बीमाकर्ताओं का कर्तव्य :
१) यदि किसी व्यक् िके पक्ष में, जिसने पालिसी कराई है, धारा १४७ की उपधारा (३)के अधीन बीमा- प्रमाणपत्र दे दिए जाने के पश्चात् ,धारा १४७ की उपधारा (१) के खंड (ख) के अधीन १.(या धारा १६३ के उपबंधों के अधीन) पालिसी द्वारा पूरा करने के लिए अपेक्षित दायित्व के संबंध में (जो दायित्व पालिसी के निबंधनों के अंतर्गत है) ऐसे किसी व्यक्ति के विरूध्द निर्णय या अधिनिर्णय अभिप्राप्त कर लिया जाता है जिसका पालिसी द्वारा बीमा किया हुआ है तो इस बात के होते हुए भी कि बीमाकर्ता पालिसी को शुन्य करने या रद्द करने का हकदार है अथवा उसने पालिसी शुन्य या रद्द कर दी है, बीमाकर्ता इस धाराके उपबंधों के अधीन रहते हुए डिक्री का फायदा उठाने के हकदार व्यक्ति को,उस दायित्व के सबंध में उसके अधीन देय राशि, जो बीमाकृत राशि से अधिक न होगी, खर्चाे की बाबत देय किसी रकम तथा निर्णयो पर ब्याज संबंधी किसी अधिनियमिति के आधार पर उस राशि पर ब्याज की बाबत देय किसी धनराशि सहित इस प्रकार देगा मानो वह निर्णीतऋणी हो ।
२) उपधारा (१) के अधीन किसी बीमाकर्ता द्वारा कोई राशि, किसी निर्णय या अधिनिर्णय के संबंध में तभी देय होगी जब उन कार्यवाहियों के प्रारंभ के पूर्व जिनमें निर्णय या अधिनिर्णय दिया गया है, बीमाकर्ता को उन कार्यवाहियों के लाए जाने की अथवा किसी निर्णय या अधिनिर्णय के संबंध में जब तक उसका निष्पादन अपील के लंबित रहने पर रोक दिया गया है सूचना, यथास्थिति, न्यायालय या दावा अधिकरण के माध्यम से मिल चुकी थी अन्यथा नहीं, और कोई बीमाकर्ता जिसे ऐसी किन्हीं कार्यवाहियों के लाए जाने की सूचना इस प्रकार दी गई है, उसका पक्षकार बनाए जाने और निम्नलिखित आधारों में से किसी आधार पर प्रतिवाद करने का हकदार होगा, अर्थात् :-
क)पालिसी की किसी विनिर्दिष्ट शर्त का भंग किया गया है, जो निम्नलिखित शर्ताे में से एक है, अर्थात् :-
१)ऐसी शर्त, जो यान का निम्नलिखित दशाओं में उपयोग किया जाना अपवर्जित करती है, अर्थात् :-
क)भाडे या पारिश्रमिक के लिए, जब वह यान बीमा संविदा की तारीख को ऐसा यान है जो भाडे या पारिश्रमिक पर चलाने के परमिट के अंतर्गत नहीं है, या
ख)आयोजित दौड और गति परीक्षा के लिए, या
ग)जिस परमिट के अधीन यान का उपयोग किया जाता है उसके द्वारा अनुज्ञात न किए गए प्रयोजन के लिए, जब वह यान परिवहन यान है,या
घ) साइड कार संलग्न किए बिना, जब यान मोटर साइकिल है, या
२)ऐसी शर्त जो नामित व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा या ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा जो सम्यक् रूप से अनुज्ञप्त नहीं है या ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा, जिसे चालन अनुज्ञप्ति धारण या अभिप्राप्त करने से निरर्हित कर दिया गया है, निरर्हता की अवधि दौरान, यान का चलाया जाना अपवर्जित करती है, या
३)ऐसी शर्त जो युध्द,गृहयुध्द, बल्वे या सिविल अंशाति की स्थिति के कारण या उसके योगदान से हुई क्षति के लिए दायित्व अपवर्जित करती है; या
ख)वह पालिसी इस आधार पर शुन्य है कि वह किसी तात्विक तथ्य के प्रकट न किए जाने से, अथवा ऐसे तथ्य के व्यपदेशन से, जिसकी कोई तात्विक मिथ्या है, अभिप्राप्त की गई थी ।
३)जहां कोई ऐसा निर्णय, जैसा उपधारा (१) में निर्दिष्ट है, किसी व्यतिकारी देश के न्यायालय से अभिप्राप्त किया गया है तथा विदेशी निर्णय की दशश में वह उस विषय की बाबत, जिसका न्यायनिर्णयन उसके द्वारा किया गया है, सिविल प्रक्रिया संहिता,१९०८ (१९०८ का ५) की धारा १३ के उपबन्धों के आधार पर निश्चायक है वहां बीमाकर्ता (जो बीमा अधिनियम, १९३८ (१९३८ का ४) के अधीन रजिस्ट्रीकृत बीमाकर्ता है, भले ही वह व्यतिकारी देश की तत्समान विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत हो या न हो )डिक्री का फायदा उठाने के हकदार व्यक्ति के प्रति उस रीति से और उस विस्तार तक जो उपधारा (१) मे विनिर्दिष्ट है, ऐसे दायी होग मानो वह निर्णय भारत के किसी न्यायालय द्वारा दिया गया हो :
परंतु बीमाकर्ता द्वारा कोई राशि किसी ऐसे निर्णय के संबंध में तभी संदेय होगी जब उस कार्यवाहियों के, जिनमें निर्णय दिया गया है, प्रारंभ के पूर्व बीमाकर्ता को उन कार्यवाहियों के लाए जाने की सूचना संबंधित न्यायालय के माध्यम से मिल चुकी ती, अन्यथा नहीं तथा कोई बीमाकर्ता, जिसे सूचना ऐसे दी गई है व्यतिकारी देश की त्समान विधि के अधीन उन कार्यवाहियों में पक्षकार बनाए जाने और उपधारा (२) में विनिर्दिष्ट आधारों के समान आधारों पर प्रतिवाद करने का हकदार है ।
४)जहां उस व्यक्ति को, जिसने पालिसी कराई है, धारा १४७ की उपधारा (३) के अधीन बीमा प्रमाणपत्र दे दिया गया है वहां पालिसी का उतना भाग, जितना उस पालिसी द्वारा बीमाकृत व्यक्तियों का बीमा उपधारा (२) के खंड (ख) में दी गई शर्ताे से भिन्न किन्हीं शर्तों के निदेॅश से निर्बन्धित करने के लिए तात्पर्यित है, धारा १४७ की उपधारा (१) के खंड (ख) के अधीन पालिसी के द्वारा पूरा करने के लिए अपेक्षित दायित्वों के संबंध में प्रभावहीन होगा :
परंतु बीमाकर्ता द्वारा किसी व्यक्ति के किसी दायित्व के निर्वहन में या मद्दे दी गई कोई धनराशि, जो केवल इस उपधारा के आधार पर पालिसी के अन्तर्गत है, बीमाकर्ता द्वारा उस व्यक्ति से वसूलीय होगी ।
५)यदि वह रकम, जिसे बीमाकर्ता पालिसी द्वारा बीमाकृत व्यक्ति द्वारा उपगत दायित्व की बाबत देने के लिए इस धारा के अधीन जिम्मेदार हो जाता है, उस रकम से अधिक है जिसके लिए बीमाकर्ता, इस धारा के उपबंधों के अलावा, उस दायित्व की बाबत पालिसी के अधीन दायी होगा, तो बीमाकर्ता उस अधिक रकम को उस व्यक्ति से वूसल करने का हकदार होगा ।
६)इस धारा में तात्विक तथ्य और तात्विक विशिष्टि पदों से क्रमश: इस प्रकार का तथ्य या इस प्रकार की विशिष्टि अभिप्रेत है जिससे किसी भी व्यवहारकुशल बीमाकर्ता के विवेक पर यह अवधारित करने में प्रभाव पडे कि क्या वह जोखिम उठाए और यदि वह ऐसा करे तो कितने प्रीमियम पर तथा किन शर्तों पर करे और जो दायित्व पालिसी के निबंधनों के अंतर्गत है पद से ऐसा दायित्व अभिप्रेत है जो पालिसी के अंतर्गत है या जो इस तथ्य के न होने पर पालिसी के अंतर्गत होता कि बीमाकर्ता, पालिसी को शून्य या रद्द करने का हकदार है या उसे शुन्य या रद्द कर चुका है ।
७)कोई भी बीमाकर्ता, जिसे उपधारा (२) या उपधारा (३) में निर्दिष्ट सूचना दे दी गई है, उपधारा (१) में निर्दिष्ट किसी ऐसे निर्णय या अधिनिर्णय का या उपधारा (३) में निर्दिष्ट निर्णय में फायदा उठाने के हकदार किसी व्यक्ति के प्रति अपने दायित्व को उस रीति से भिन्न रीति से शून्य करने का हकदार होगा, जो, यथास्थिति, उपधारा (२) में या व्यतिकारी देश की तत्समान विधि में उपबंधित है, अन्यथा नहीं ।
स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिए दावा अधिकरण से धारा १६५ के अधीन गठित दावा अधिकरण और अधिनिर्णय से धारा १६८ के अधीन उस अधिकरण द्वारा किया गया अधिनिर्णय अभिप्रेत है ।
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१.१९९४ के अधिनियम सं. ५४ की धारा ४७ द्वारा अंत: स्थापित ।
#Motor Vehicles Act 1988 Hindi section 149 #MVActHindi Section 149
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