मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा २० :
न्यायालय की निरर्हित करने की शक्ति :
१)जब कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए या ऐसे अपराध के लिए, जिसके करने में मोटर यान का उपयोग किया गया था, दोषसिध्द किया गया है तब वह न्यायालय, जिसने उसे दोषसिध्द किया है, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य दंड अधिरोपित करने के अतिरिक्त उस व्यक्ति को, जो इस प्रकार दोषसिध्द किया गया है, सभी वर्गों या वर्णन के यान, या किसी विशिष्ट वर्ग या वर्णन के ऐसे यानों को जो ऐसी अनुज्ञप्ति में विनिर्दिष्ट हैं, चलाने के लिए, कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने के लिए उतनी अवधि के लिए जितनी न्यायालय विनिर्दिष्ट करे, निरर्ह घोषित कर सकेगा:
परन्तु धारा १८३ के अधीन दंडनीय किसी अपराध की बाबत ऐसी कोई आदेश पहले या दूसरे अपराध के लिए नहीं दिया जाएगा ।
२)जहां किसी व्यक्ति को धारा १३२ की उपधारा (१) के खंड (ग), धारा १३४ या धारा १८५ के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिध्द किया जाता है, वहां किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिध्द करने वाला न्यायालय उपधारा (१) के अधीन निरर्हता का आदेश करेगा और यदि अपराध धारा १३२ की उपधारा (१) के खंड (ग) या धारा १३४ के संबंध में है, तो ऐसी निरर्हता एक मास से अन्यून की अवधि के लिए होगी और यदि अपराध धारा १८५ के संबंध में है तो ऐसी निरर्हता छह मास से अन्यून की अवधि के लिए होगी।
३)न्यायालय, जब तक वह विशेष कारणों से, जिन्हे लेखबध्द किया जाएगा, अन्यथा आदेश देना उचित न समझे, किसी ऐसे व्यक्ति को निरर्ह करने का आदेश देगा -
क)जो धारा १८४ के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिध्द किए जाने पर उस धारा के अधीन दंडनीय अपराध के लिए पुन:दोषसिध्द किया गया है; या
ख)जो धारा १८९ के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिध्द किया गया है ;या
ग)जो धारा १९२ के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिध्द किया गया है :
परन्तु निरर्हता की अवधि खंड (क) में निर्दिष्ट दशा में पांच वर्ष से या खंड (ख) में निर्दिष्ट दशा में दो वर्ष से या खंड (ग)में निर्दिष्ट दशा में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी ।
४)धारा १८४ के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिध्द किए गए किसी व्यक्ति को निरर्ह करने का आदेश देने वाला न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि चाहे ऐसे व्यक्ति ने धारा ९ की उपधारा (३) में यथानिर्दिष्ट चालन सक्षमता का परीक्षण पहले उत्तीर्ण कर लिया हो या न कर लिया हो, वह तब तक निरर्ह बना रहेगा जब तक वह निरर्हता का आदेश दिए जाने के पश्चात् वैसे परीक्षण में अनुज्ञापन प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप में उत्तीर्ण नहीं हो जाता ।
५) वह न्यायालय, जिसकों सामान्यत: उपधारा (१) में विनिर्दिष्ट प्रकार के अपराध के लिए हुई किसी दोषसिध्दि की अपील की जा सकेगी, उस उपधारा के अधीन किए गए निरर्हता के किसी आदेश को इस बात के होते हुए भी अपास्त कर सकेगा या उसमें परिवर्तन कर सकेगा कि उस दोषसिध्दि के विरूध्द कोई अपील नहीं होगी जिसके परिणामस्वरूप निरर्हता का ऐसा आदेश किया गया था ।
#Motor Vehicles Act 1988 Hindi section 20 #MVActHindi Section 20
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