सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
आदेश २ :
नियम २ :
वाद के अन्तर्गत संपूर्ण दावा होगा :
१) हर वाद के अन्तर्गत वह पूरा दावा होगा जिसे उस वाद-हेतुक के विषय में करने का वादी हकदार है, किन्तु वादी वाद को किसी न्यायालय की अधिकारिता के भीतर लाने की दृष्टि से अपने दावे के किसी भाग का त्याग कर सकेगा ।
२) दावे के भाग का त्याग - जहां वादी अपने दावे के किसी भाग के बारे में वाद लाने का लोप करता है या उसे साशय त्याग देता है वहां उसके पश्चात् वह इस प्रकार लोप किए गए या त्यक्त भाग के बारे में वाद नहीं लाएगा ।
३) कई अनुतोषों में से एक के लिए वाद लाने का लोप - एक ही वाद-हेतुक के बारे में एक से अधिक अनुतोष पाने का हकदार व्यक्ति ऐसे सभी अनुतोषों या उनमें से किसी के लिए वाद ला सकेगा, किन्तु यदि वह ऐसे सभी अनुतोषों के लिए वाद लाने का लोप न्यायालय की इजाजत के बिना करता है तो उसके पश्चात् वह इस प्रकार लोप किए गए किसी भी अनुतोष के लिए वाद नहीं लाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस नियम के प्रयोजनों के लिए, कोई बाध्यता और उसके पालन के लिए सांपाश्र्विक प्रतिभूति और उसी बाध्यता के अधीन उद्भूत उत्तरोत्तर दावों के बारे में यह समझा जाएगा कि वे क्रमश: एक ही वाद-हेतु गठित करते है ।
दृष्टांत :
क एक घर ख को १२०० रु वार्षिक भाटक के पट्टे पर देता है । सन १९०५, १९०६ और १९०७ इन सभी पूरे वर्षो का भाटक शोध्य है और दिया नहीं गया है । क सन १९०८ में ख पर केवल सन १९०६ के शोध्य भाटक के लिए वाद लाता है । ख के ऊपर क उसके पश्चात् सन १९०५ या १९०७ के शोध्य भाटक के लिए वाद नहीं लाएगा ।
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