सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
आदेश ४५ :
नियम ७ :
प्रमाणपत्र दिए जाने पर अपेक्षित प्रतिभूति और निक्षेप :
१) जहां प्रमाणपत्र दे दिया जाता है वहां आवेदक परिवादित डिक्री की तारीख से १.(नब्बे दिन या हेतुक दर्शित किए जाने पर न्यायालय द्वारा अनुज्ञात की जाने वाली साठ दिन से अनधिक अतिरिक्त अवधि) के भीतर या प्रमाणपत्र दिए जाने की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के भीतर जो भी तारीख पश्चात्वर्ती हो, -
क) प्रत्यर्थी के खर्चों के लिए प्रतिभूति २.(नकद या सरकारी प्रतिभूतियों में) देगा, तथा
ख) वह रकम निक्षिप्त करेगा जो वाद में के पूरे अभिलेख को अनुवाद कराने, अनुलिपि कराने, अनुक्रमणिका तैयार करने, ३.(मुद्रण) और उसकी शुद्ध प्रति के ४.(उच्चतम न्यायालय) को पारेषण के व्ययों की पूर्ति के लिए अपेक्षित हो किन्तु निम्नलिखित के लिए रकम निक्षिप्त नहीं कराई जाएगी :-
१) वे प्ररुपिक दस्तावेजों जिनका अपवर्जित किया जाना ५.(उच्चतम न्यायालय के) तत्समय प्रवृत्त किसी भी ९.(नियम) द्वारा निर्दिष्ट हो ;
२) ऐसे कागज जिन्हें पक्षकार अपवर्जित करने के लिए सहमत हो जाएं ;
३) ऐसे लेखा या लेखाओं के प्रभाग, जिन्हें न्यायालय द्वारा इस प्रयोजन के लिए सशक्त अधिकारी अनावश्यक समझे और जिनके बारे में पक्षकारों ने विनिर्दिष्ट रुप में मांग नहीं की है कि वे सम्मिलित किए जाएं ;
तथा
४) ऐसी अन्य दस्तावेजें जिन्हें अपवर्जित करने के लिए उच्च न्यायालय निदेश दे :
६.(परन्तु न्यायालय प्रमाणपत्र देने के समय किसी ऐसे विरोधी पक्षकार को जो उपसंजात हो, सुनने के पश्चात् विशेष कष्ट के आधार पर यह आदेश दे सकेगा कि प्रतिभूति किसी अन्य रुप में दी जाए :
परन्तु यह और कि ऐसी प्रतिभूति की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रतिवाद करने के लिए विरोधी पक्षकार को कोई भी स्थगन नहीं दिया जाएगा ।
७.(***)
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१. १९२० के अधिनियम २६ की धारा ३ द्वारा छह मास के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९२० के अधिनियम २६ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित ।
३. विधि अनूकूलन आदेश, १९५० द्वारा अन्त:स्थापित ।
४. विधि अनूकूलन आदेश, १९५० द्वारा हिज मैजेस्टी इन काउन्सिल के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. विधि अनूकूलन आदेश, १९५० द्वारा हिज मैजेस्टी इन काउन्सिल के आदेश के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६. १९२० के अधिनियम २६ की धारा ३ द्वारा जोडा गया ।
७. १विधि अनूकूलन आदेश, १९५० द्वारा उपनियम ३ का लोप किया गया ।
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