सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
आदेश ४७ :
पुनर्विलोकन :
नियम १ :
निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन :
१) जो कोई व्यक्ति -
क) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी अपील अनुज्ञात है किन्तु जिसकी कोई अपील नहीं की गई है,
ख) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी अपील अनुज्ञात नहीं है, अथवा
ग) लघुवाद न्यायालय द्वारा किए गए निर्देश पर विनिश्चय से,
अपने को व्यथित समझता है और जो ऐसी नई और महत्वपूर्ण बात या साक्ष्य के पता चलने से जो तत्परता के प्रयोग के पश्चात् उस समय जब डिक्री पारित की गई थी या आदेश किया गया था, उसके ज्ञान में नहीं था या उसके द्वारा पेश नहीं किया जा सकता था, या किसी भूल या गलती के कारण जो अभिलेख के देखने से ही प्रकट होती हो या किसी अन्य पर्याप्त कारण से वह चाहता है कि उसके विरुद्ध पारित डिक्री या किए गए आदेश का पुनर्विलोकन किया जाए वह उस न्यायालय से निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन कर सकेगा जिसने वह डिक्री पारित की थी या वह आदेश किया था ।
२) वह पक्षकार जो डिक्री या आदेश की अपील नहीं कर रहा है, निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन इस बात के होते हुए भी किसी अन्य पक्षकार द्वारा की गई अपील लंबित है वहां के सिवाय कर सकेगा जहां ऐसी अपील का आधार आवेदक और अपीलार्थी दोनों के बीच सामान्य है या जहां प्रत्यर्थी होते हुए वह अपील न्यायालय में वह मामला उपस्थित कर सकता है जिसके आधार पर वह पुनर्विलोकन के लिए आवेदन करता है ।
१.(स्पष्टीकरण :
यह तथ्य कि किसी विधि-प्रश्न का विनिश्चय जिस पर न्यायालय का निर्णय आधारित है, किसी अन्य मामले में वरिष्ठ न्यायालय के पश्चात्वर्ती विनिश्चय द्वारा उलट दिया गया है या उपान्तरित कर दिया गया है, उस निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आधार नहीं होगा ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ९२ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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