सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
आदेश ५ :
नियम २० :
प्रतिस्थापित तामील :
१) जहां न्यायालय का समाधान हो जाता है कि यह विश्वास करने के लिए कारण है कि प्रतिवादी इस प्रयोजन से कि उस पर तामील न होने पाए, सामने आने से बचता है या समन की तामील मामूली प्रकार से किसी अन्य कारण से नहीं की जा सकती वहां न्यायालय आदेश देगा कि समन की तामील उसकी एक प्रति न्यायसदन के किसी सहजदृश्य स्थान में लगाकर और (यदि ऐसा कोई गृह हो) तो उस गृह के, जिसमें प्रतिवादी का अन्तिम बार निवास करना या कारबार करना या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करना ज्ञात है, किसी सहजदृश्य भाग पर भी लगा कर या ऐसी अन्य रीति से, जो न्यायालय ठीक समझे, की जाए ।
१.(१-क) जहां उपनियम (१) के अधीन कार्य करने वाला न्यायालय समाचारपत्र में विज्ञापन द्वारा तामील का आदेश करता है वहां वह समाचारपत्र ऐसा दैनिक समाचारपत्र होगा जिसका परिचालन उस स्थानीय क्षेत्र में होता है, जिसमें प्रतिवादी का अन्तिम बार वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करना या कारबार करना या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करना ज्ञात है ।)
२) प्रतिस्थापित तामील का प्रभाव - न्यायालय के आदेश द्वारा प्रतिस्थापित तामील इस प्रकार प्रभावी होगी मानो वह स्वयं प्रतिवादी पर की गई हो ।
३) जहां तामील प्रतिस्थापित की गई हो वहां उपसंजाति के लिए समय का नियत किया जाना - जहां तामील न्यायालय के आदेश द्वारा प्रतिस्थापित की गई है वहां न्यायालय प्रतिवादी को उपसंजाति के लिए ऐसा समय नियत करेगा जो उस मामले में अपेक्षित हो ।
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ५५ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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