सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
आदेश ७ :
नियम १०-ख :
समुचित न्यायालय को वाद अन्तरित करने की अपील न्यायालय की शक्ति :
१) जहां वादपत्र के लौटाए जाने के आदेश के विरुद्ध अपील में अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय ऐसे आदेश की पुष्टि करता है वहां अपील न्यायालय, यदि वादी आवेदन द्वारा ऐसी वांछा करे तो वादपत्र लौटाते समय वादी को यह निदेश दे सकेगा कि वह वादपत्र को उस न्यायालय में जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था (चाहे ऐसा न्यायालय उस राज्य के भीतर हो या बाहर जिसमें अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय स्थित है), परिसीमा अधिनियम १९६३ (१९६३ का ३६) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, फाईल करे और उस न्यायालय में जिसमें वादपत्र फाइल किए जाने का निदेश दिया जाता है, पक्षकारों की उपसंजाति के लिए तारीख नियत कर सकेगा और जब इस प्रकार तारीख नियत कर दी जाती है तब उस न्यायालय के लिए जिसमें वादपत्र फाइल किया गया है, वाद में उपसंजाति के लिए समन प्रतिवादी पर तामील करना तब तक आवश्यक नहीं होगा जब तक कि वह न्यायालय जिसमें वादपत्र फाइल किया गया है, अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से, अन्यथा निदेश न दे ।
२) न्यायालय द्वारा उपनियम (१) के अधीन किए गए किसी निदेश से पक्षकारों के उन अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहींं पडेगा जो उस न्यायालय की जिसमें वादपत्र फाइल किया गया है वाद का विचारण करने की अधिकारिता को प्रश्नगत करने के संबंध में है ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ५७ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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