अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम १९५६
धारा २२ख :
मामलों का संक्षिप्त विचारण करने करने की न्यायालयों की शक्ति :
दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (१९७४ का २) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे तो यह निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण किसी मजिस्ट्रेट द्वारा (जिसके अन्तर्गत धारा २२क की उपधारा (१) के अधीन स्थापित किए गए किसी न्यायालय का पीठासीन अधिकारी भी) संक्षेपत: किया जाएगा और उक्त संहिता की धारा २६२ से धारा २६५ के (जिसके अन्तर्गत ये दोनों धाराएं भी है) उपबंध यवत्शक्य ऐसे विचारण को लागू होंगे :
परन्तु इस धारा के अधीन किसी संक्षिप्त विचारण में किसी दोषसिद्धि की दशा में मजिस्ट्रेट के लिए एक वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास का दंडादेश पारित करना विधिपूर्ण होगा :
परन्तु यह और कि जब इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण के प्रारंभ के समय या उसके अनुक्रम में मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि मामला इस प्रकार का है कि एक वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास का दंडादेश पारित करना होगा या किसी अन्य कारणवश मामले का विचारण संक्षेप्त: किया जाना अवांछनीय है तो मजिस्ट्रेट पक्षकारों की सुनवाई के पश्चात् उस आशय का एक आदेश लेखबद्ध करेगा और तत्पश्चात् ऐसे किसी साक्षी को, जिसकी परीक्षा की जा चुकी है, पुन: बुलाएगा और मामले को उक्त संहिता द्वारा उपबंधित रीति से पुन: सुनने के लिए अग्रसर होगा ।)
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१. १९७८ के अधिनियम सं. ४६ की धारा १७ द्वारा (२-१०-१९७९ से) धारा २२क और २२ख अंत:स्थापित ।
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