धारा २३ : नियम बनाने की शक्ति :
अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम १९५६
धारा २३ :
नियम बनाने की शक्ति :
१) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।
२) विशिष्टत: और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित के लिए उपबंध कर सकेंगे -
क) किसी स्थान की सार्वजनिक स्थान के रुप में अधिसूचना ;
१.(ख) ऐसे व्यक्तियों को जिनकी सुरक्षित अभिरक्षा के लिए धारा १७ की उपधारा (१) के अधीन आदेश पारित किए गए हैं, अभिरक्षा में रखना और उनका भरण-पोषण;)
२.(खख) किसी सुधार संस्था से धारा १०क की उपधारा (३) के अधीन किसी अपराधी को उन्मोचित किया जाना और ऐसे अपराधी को दी जाने वाली अनुज्ञप्ति का प्ररुप;)
३.(ग) इस अधिनियम के अधीन ४.(व्यक्तियों) का, यथास्थिति, संरक्षा गृहों या सुधार संस्थाओं में निरोध या रका जाना और उनका भरण-पोेषण;)
घ) निर्मोचित सिद्धदोषों द्वारा निवास स्थान की अधिसूचना अथवा निवास स्थान की तब्दीली या उससे अनुपस्थिति के बारे में धारा ११ के उपबंधों का कार्यान्वित किया जाना;
ङ) धारा १३ की उपधारा (१) के अधीन विशेष पुलिस अधिकारी को नियुक्त करने के प्राधिकार का प्रत्यायोजन;
च) धारा १८ के उपबंधों को प्रभावशील करना;
५.(छ) एक) धारा २१ के अधीन संरक्षा गृहों और सुधार संस्थाओं की स्थापना, अनुरक्षण, प्रबंध और अधीक्षण तथा ऐसे गृहों या संस्थाओं में नियोजित, शक्तियां और कर्तव्य;
दो) वह प्ररुप जिसमें अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन किए जा सकेंगे और वे विशिष्टियां जो ऐसे आवेदन में अन्तर्विष्ट होंगी;
तीन) किसी अनुज्ञप्ति के दिए जाने या नवीकरण के लिए प्रक्रिया, वह समय जिसके अन्दर ऐसी अनुज्ञप्ति दी या नवीकृत की जाएगी और अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन के संबंध में पूरा-पूरा अन्वेषण करने में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;
चार) अनुज्ञप्ति का प्ररुप और उसमें विनिर्दिष्ट की जाने वाली शर्तें;
पांच) वह रीति जिसमें संरक्षागृह और सुधार संस्था के लेखे रके जाएंगे और संपरीक्षित किए जाएंगे;
छह) अनुज्ञप्तिधारी द्वारा रजिस्टरों और विवरणों का रखा जाना और ऐसे रजिस्टरों और विवरणों का प्ररुप;
सात) संरक्षा गृहों और सुधार संस्थाओं के अंत:वासियों की देख रेख, उपचार, भरण-पोषण, प्रशिक्षण, शिक्षण, नियन्त्रण और अनुशासन;)
आठ)ऐसे अंत:वासियों से मिलना और पत्र व्यवहार करना;
नौ) संरक्षागृहों या सुधार संस्थाओं में निरोध के लिए दण्डित ४.(व्यक्तियों) का तब तक के लिए अस्थायी निरोध जब तक उनको ऐसे गृहों या संस्थाओं में भेजने के लिए इन्तजाम न हो जाए ;
दस) किसी अन्त:वासी का धारा २१ की उपधारा (९क) के अधीन-
क) किसी एक संरक्षागृह से दूसरे में या किसी सुधार संस्था में स्थानान्तरण,
ख) एक सुधार संस्था से दूसरी में या किसी संरक्षा गृह में स्थानान्तरण;
ग्यारह) न्यायालय के आदेश के अनुसरण में किसी संरक्षागृह या सुधार संस्था से किसी ऐसे ४.(व्यक्ति) का कारागार को स्थानान्तरण जो अशोध्य या उस संरक्षागृह या सुधार संस्था के अन्य अंत:वासियों पर बुरा असर डालने वाले पाए जाएं तथा ऐसे कारागार में उसके निरोध की कालावधि;
बारह) धारा ७ या धारा ८ के अधीन दण्डित ४.(व्यक्तियों) का किसी संरक्षागृह या सुधार संस्था को स्थानान्तरण और ऐसे गृह या संस्था में उनके निरोध की कालावधि;
तेरह) संरक्षागृह या सुधार संस्था को अंत:वासियों का या तो पूर्णत: या शर्तों के अधीन उन्मोचन और ऐसी शर्तों को भंग करने की दशा में उनकी गिरफ्तारी;
चौदह) अंत:वासियों को थोडी कालावधि के लिए अनुपस्थित रहने की अनुज्ञा देना;
पन्द्रह) संरक्षागृह या सुधार संस्थाओं और अन्य संस्थाओं का निरीक्षण जिनमें ४.(व्यक्तियों) को रखा जा सके, निरुद्ध किया जा सके और उनका भरण-पोषण किया जा सके ।
ज) कोइ अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।
३) उपधारा (२) के खण्ड (घ) या खण्ड (छ) के अधीन कोई नियम बनाने में राज्य सरकार उपबंधित कर सकेगी कि उसका भंग जुर्माने से जो दो सौ पचास रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।
४) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए सब नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र विधान-मण्डल के समक्ष रखे जाएंगे ।
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१. १९८६ के अधिनियम सं. ४४ की धारा २३ द्वारा (२६-१-१९८७ से) खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९७८ के अधिनियम सं. ४६ की धारा १८ द्वारा (२-१०-१९७९ से) प्रतिस्थापित ।
३. १९७८ के अधिनियम सं. ४६ की धारा १८ द्वारा (२-१०-१९७९ से) खण्ड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९८६ के अधिनियम सं. ४४ की धारा ४ द्वारा (२६-१-१९८७ से) (स्त्रियां और लडकियां) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. १९७८ के अधिनियम सं. ४६ की धारा १८ द्वारा (२-१०-१९७९ से) खण्ड (छ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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