सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
परिशिष्ट क :
अभिवचन :
प्ररुप संख्यांक ४० :
अन्तराभिवाची :
(शीर्षक)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है कि -
१. इसमें आगे उल्लिखित दावों की तारीख के पहले ज झ ने वादी के पास (सम्पत्ति का वर्णन कीजिए) को (सुरिक्षित रुप से रखने के लिए) निक्षिप्त किया था ।
२. प्रतिवादी ग घ (ज झ से उसके अभिकथित समनुदेशन के अधीन) उसका दावा करता है ।
३. प्रतिवादी च छ भी (ज झ के ऐसे आदेश के अधीन, जिसके द्वारा वह उसे अन्तरित की गई भी) उसका दावा करता है ।
४. वादी, प्रतिवादियों के अपने-अपने अधिकारों के बारे में अनभिज्ञ है ।
५. उसका उस सम्पत्ति पर, प्रभारों और खर्चों से भिन्न, कोई दावा नहीं है और वह उसका उन व्यक्तियों को परिदान करने के लिए तैयार और रजामन्द है जिन्हें देने का न्यायालय निदेश दे ।
६. यह वाद दोनों प्रतिवादियों में से किसी के साथ दुस्सन्धि करने के बाद नहंीं लाया गया है ।
(जैसा प्ररुप संख्यांक १ के पैरा ४ और ५ में है ।)
९. वादी दावा करता है कि -
१) प्रतिवादी को वादी के विरुद्ध उसके सम्बन्ध में कोई कार्यवाही करने से व्यादेश द्वारा अवरुद्ध कर दिया जाए ;
२) उनसे अपेक्षा की जाए कि वे उक्त सम्पत्ति पर अपने दावों के बारे में परस्पर अन्तराभिवचन करे ;
(३) इस मुकदमे के लम्बित रहने तक उक्त सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति को प्राधिकृत किया जाए ;)
४) उसका ऐसे (व्यक्तियों) को परिदान कर देने पर वादी उसके सम्बन्ध में प्रतिवादियों में से किसी के भी प्रति सब दायित्व में ुउन्मोंचित किया जाए ।
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