सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
परिशिष्ट क :
अभिवचन :
प्ररुप संख्यांक ४५ :
पुरोबन्ध या विक्रय :
(शीर्षक)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है कि -
१. वादी प्रतिवादी की भूमियों का बन्धकदार है ।
२. बन्धक की विशिष्टियां निम्नलिखित है -
क) (तारीख) ;
ख) (बन्धककर्ता और बन्धकदार के नाम) ;
ग) (प्रतिभूति राशि) ;
घ) (ब्याज की दर) ;
ङ) (बन्धक के अधीन सम्पत्ति) ;
च) (अब शोध्य रकम) ;
छ) (यदि वादी का हक अन्य से व्युत्पन्न है तो जिन अन्तरणों या न्यागमन के अधीन वह दावा करता है वह संक्षेप में लिखिए ।)
(यदि वादी सकब्जा बन्धकदार है तो यह लिखिए -)
३. वादी ने बन्धक सम्पत्ति का कब्जा ता. ---------- को लिया और वह सकब्जा बन्धकदार के रुप में उस समय से लेखा देने के लिए तैयार है ।
(जैसा प्ररुप संख्यांक १ के पैरा ४ और ५ में है ।)
६. वादी दावा करता है कि -
१) उसे संदाय किया जाए या उसमें व्यतिक्रम होने पर (विक्रय या) पुरोबन्ध किया जाए (और कब्जा दिलाया जाए) ;
(जहां आदेश ३४ का नियम ६ लागू हो)
२) यदि विक्रय के आगम वादी को शोध्य रकम के संदाय के लिए अपर्याप्त पाए जाएं, तो वादी की यह स्वतंत्रता आरक्षित रखी जाए कि वह १.(बाकी के लिए आदेश) का आवेदन कर सकेगा ।
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा (१-२-१९७७ से) बाकी के लिए डिक्री के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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