सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
परिशिष्ट क :
अभिवचन :
प्ररुप संख्यांक ४८ :
विनिर्दिष्ट पालन (संख्यांक २)
(शीर्षक)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है कि -
१. तारीख ------------- को वादी और प्रतिवादी ने लिखित करार किया, जिसकी मूल दस्तावेज इसके साथ उपाबद्ध है ।
प्रदिवादी करार में वर्णित स्थावर सम्पत्ति का आत्यंतिक रुप से हकदार था ।
२. ता. ------------ को वादी ने प्रतिवादी को ------------ रु. प्रस्तुत किए और उक्त सम्पत्ति का अन्तरण पर्याप्त लिखत द्वारा किए जाने की मांग की ।
३. ता. ----------- को वादी ने ऐसा अन्तरण किए जोन की फिर मांग की (या प्रतिवादी ने उसे वादी को अन्तरित करने से इन्कार कर दिया ।)
४. प्रतिवादी ने कोई अन्तरण लिखत निष्पादित नहीं की है ।
५. वादी उक्त सम्पत्ति का क्रयधन प्रतिवादी को देने के लिए अब भी तैयार और रजामन्द है ।
(जैसा प्ररुप संख्यांक १ के पैरा ४ और ५ में है ।)
८. वादी दाव करता है कि -
१) प्रतिवादी (करार के निबन्धनों के अनुसार) उक्त सम्पत्ति वादी को पर्याप्त लिखत द्वारा अन्तरित कर दे ;
२) उस सम्पत्ति को रोख रखने के लिए उसे ------------- रुपए प्रतिकर दे ।
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