धारा १०१ : ऐसे अधिकार (शरीर की निजी प्रतिरक्षा) का...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०१ : ऐसे अधिकार (शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा) का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है : यदि अपराध पूर्वगामी (इससे पहले) अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है, तो… more »
धारा १०० : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०० : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारि करने तक कब होता है : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, हमलावर… more »
धारा ९९ : कोई कार्य, जिनके विरुध्द निजी प्रतिरक्षा का..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ९९ : कोई कार्य, जिनके विरुध्द निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है : यदि कोई कार्य या बात, जिससे मृत्यू या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रुप से कारित नहीं होती; सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए… more »
धारा ९८ : विकृतचित्त (मनोविकल) व्यक्ती या आदी व्यक्ती..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ९८ : विकृतचित्त (मनोविकल) व्यक्ती या आदी व्यक्ती के कार्य के विरुद्ध निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार : जबकि कोई कार्य या बात, जो अन्यथा कोई अपराध होता है, उस कार्य या बात को करने वाले व्यक्ती के बालकपन, अपरिपक्व… more »
धारा ९७ : शरीर तथा संपत्ति की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : अध्याय ४ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में : धारा ९७ : शरीर तथा संपत्ति की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार : इस अधिनियम कें धारा ९९ में अन्तर्विष्ट निर्बंधनों के अध्ययीन, हर व्यक्ती को अधिकार है कि वह… more »
धारा ९६ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा में की गई बाते या..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : अध्याय ४ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में : धारा ९६ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा में की गई बाते या कार्य : जो निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है, वह बात या कार्य अपराध नहीं है ।… more »
धारा ९५ : किसी बात या कार्य से तुच्छ या अल्प अपहानि..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ९५ : किसी बात या कार्य से तुच्छ या अल्प अपहानि कारित हो : कोई बात या कार्य इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की जानी आशयित है या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात है, यदि वह इतनी अल्प या… more »
धारा ९४ : वह कार्य जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ९४ : वह कार्य जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है : हत्या और राज्य के विरुद्ध अपराधों को मृत्यू से दण्डनीय है, उन्हे छोडकर कोई बात या कार्य अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे… more »
धारा ९३ : सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना(दो या अधिक..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ९३ : सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना (दो या अधिक व्यक्तियों या स्थानों को सूचना देने के साधन) : सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो जिसे वह दी गई है, यदि वह उस व्यक्ती के फायदे… more »
धारा ९२ : किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति के बिना...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ९२ : किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति के बिना सद्भावपूर्वक किया गया कार्य : कोई बात या कार्य, जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसकी सम्मति के बिना की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण, जो उस बात से उस… more »