हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६
अध्याय ३ :
वसीयती उत्तराधिकार :
धारा ३० :
वसीयती उत्तराधिकार :
१.(*) कोई हिन्दू विल द्वारा या अन्य वसीयती व्ययन द्वारा भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, १९२५ (१९२५ का ३९) या हिन्दुओं को लागू और किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अनुसार किसी ऐसी सम्पत्ति को २.(व्ययनित कर सकेगा या कर सकेगी) जिसका ऐसे व्ययनित किया जाना शक्य हो।
स्पष्टीकरण :
मिताक्षरा सहदायिकी सम्पत्ति में हिन्दू पुरुष का हित या तरवाड, तावषि, इल्लम, कुटुम्ब या कवरु की सम्पत्ति में तरवाड, तावषि, इल्लम, कुटुम्ब या कवरु के सदस्य का हित इस अधिनियम में या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी बात के होते हुए भी इस (धारा) के
अर्थ के अन्दर ऐसी सम्पत्ति समझी जाएगी जिसका उस द्वारा व्ययनित किया जाना शक्य हो।
४.(*)
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१. १९६० के अधिनियम सं० ५८ की धारा ३ तथा द्वितीय अनुसूची द्वारा कोष्ठकों और अंक (१) का लोप किया गया ।
२. २००५ के अधिनियम सं० ३९ की धारा ६ द्वारा (९-९-२००५ से) प्रतिस्थापित ।
३. १९७४ के अधिनियम सं० ५६ की धारा ३ तथा द्वितीय अनुसूची द्वारा (२०-१२-१९७४ से) उपधारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९५६ के अधिनियम सं० ७८ की धारा २९ द्वारा (२१-२-१९५६ से) उपधारा (२) का लोप किया गया ।
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