सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
खर्चे
धारा ३५ :
१.(खर्चे :
१) न्यायालय को, किसी वाणिज्यिक विवाद के संबंध में, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या नियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, यह अवधारण करने का विवेकाधिकार है कि:-
क) क्या खर्चे एक पक्षकार द्वारा अन्य पक्षकार को संदेय है;
ख) उन खर्चों की मात्रा; और
ग) उनका संदाय कब किया जाना है ।
स्पष्टीकरण :
खंड (क) के प्रयोजन के लिए खर्चे पद से, -
एक) साक्षियों की उपगत फीस और व्ययों;
दो) उपगत विधिक फीस और व्ययों;
तीन) कार्यवाहियों के संबंध में उपगत किन्हीं अन्य व्ययों,
से सुसंगत युक्तियुक्त खर्चे अभिप्रेत है ।
२) यदि न्यायालय खर्चों के संदाय का आदेश करने का विनिश्चय करता है तो साधारण नियम यह है कि असफल पक्षकार को सफल पक्षकार के खर्चों का संदाय करने के लिए आदेशित किया जाएगा :
परन्तु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो अभिलिखित किए जाएं, ऐसा कोई आदेश कर सकेगा, जो साधारण नियम से भिन्न है ।
दृष्टांत :
वादी ने, अपने वाद में संविदा भंग के लिए किसी धन संबंधी डिक्री और नुकसानियों की ईप्सा करता है । न्यायालय यह अभिनिर्धारित करता है कि वादी धन संबंधी डिक्री का हकदार है । तथापि, उसका पुन: यह निष्कर्ष है कि नुकसानियों का दावा तुच्छ और तंग करने वाला है ।
ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय, वादी के सफल पक्षकार होने के बावजूद नुकसानियों के लिए तुच्छ दावे करने के कारण वादी पर खर्चे अधिरोपित कर सकेगा ।
३) न्यायालय, खर्चों के संदाय का आदेश करते समय निम्नलिखित परिस्थितियों को ध्यान में रखेगा, -
क) पक्षकारों का आचरण;
ख) क्या कोई पक्षकार अपने मामले में सफल हुआ है, भले ही वह पक्षकार पूर्ण रुप से सफल नहीं हुआ हो;
ग) क्या पक्षकार ने मामले के निपटारे में विलंब करने वाला कोई तुच्छ प्रतिदावा किया है;
घ) क्या समझौता करने का एक पक्षकार द्वारा कोई युक्तियुक्त प्रस्ताव किया गया है और अन्य पक्षकार द्वारा उसको अयुक्तियुक्त रुप से इंकार किया गया है; और
ङ) क्या पक्षकार द्वारा तुच्छ दावा किया गया है और न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए तंग करने वाला कार्यवाही संस्थित की गई है ।
४) ऐसे आदेशों में, जो न्यायालय द्वारा इस उपबंध के अधीन किए जा सकेंगे, ऐसा आदेश सम्मिलित होगा कि किसी पक्षकार को, -
क) दूसरे पक्षकार के आनुपातिक खर्चों का;
ख) दूसरे पक्षकार के खर्चों के संबंध में कथित रकम का;
ग) किसी निश्चित तारीख से या निश्चित तारीख तक के खर्चों का;
घ) कार्यवाहियां आरंभ होने के पहले उपगत खर्चों का;
ङ) कार्यवाहियों में किए गए विशिष्ट उपायों से संबंधित खर्चों का;
च) कार्यवाहियों के किसी सुभिन्न भाग से संबंधित खर्चों का; और
छ) किसी निश्चित तारीख से या निश्चित तारीख तक के खर्चों पर ब्याज का,
संदाय करना होगा ।)
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१. २०१६ के अधिनियम सं. ४ की धारा १६ और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित ।
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