हिंदू विवाह अधिनियम १९५५
धारा २३क :
१.(विवाह-विच्छेद और अन्य कार्यवाहियों में प्रत्यर्थी को अनुतोष :
विवाह- विच्छेद या न्यायिक पृथक्करण या दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए किसी कार्यवाही में प्रत्यर्थी अर्जीदार के जारकर्म, क्रूरता या अधित्यजन के आधार पर चाहे गए अनुतोष का न केवल विरोध कर सकेगा बल्कि वह उस आधार पर इस अधिनियम के अधीन किसी अनुतोष के लिए प्रतिदावा भी कर सकेगा और यदि अर्जीदार का जारकर्म, क्रूरता या अभित्यजन साबित हो जाता है तो न्यायालय प्रत्यर्थी को इस अधिनियम के अधीन कोई ऐसा अनुतोष दे सकेगा जिसके लिए वह उस दशा में हकदार होता या होती जिसमें उसने उस आधार पर ऐसे अनुतोष की मांग करते अर्जी उपस्थापित की होती।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा १७ द्वारा अन्त:स्थापित ।
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