सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा २० :
अन्य वाद वहां संस्थित किए जा सकेंगे जहां प्रतिवादी निवास करते है या वाद-हेतुक पैदा होता है :
पूर्वोक्त परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, हर वाद ऐसे न्यायालय में संस्थित किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर -
क) प्रतिवादी, या जहां एक से अधिक प्रतिवादी है वहां प्रतिवादियों में से हर एक वाद के प्रारम्भ के समय वास्तव में स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है ; अथवा
ख ) जहां एक से अधिक प्रतिवादी है वहां प्रतिवादियों में से कोई भी प्रतिवादी वाद के प्रारम्भ के समय वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, परन्तु यह तब जबकि ऐसी अवस्था में या तो न्यायालय की इजाजत दे दी गई है या जो प्रतिवादी पूर्वोक्त रुप में निवास नहीं करते या कारबार नहीं करते या अभिलाभ के लिए स्वयं काम नहीं करते, वे ऐसे संस्थित किए जाने के लिए उपमत हो गए है; अथवा
ग) वाद-हेतुक पूर्णत: या भागत: पैदा होता है ।
१.(***)
२.(स्पष्टीकरण) :
निगम के बारे में यह समझा जाएगा कि वह ३.(भारत) में के अपने एकमात्र या प्रधान कार्यालय में या किसी ऐसे वाद-हेतुक की बाबत, जो ऐसे किसी स्थान में पैदा हुआ है जहां उसका अधीनस्थ कार्यालय भी है, ऐसे स्थान में कारबार करता है ।
दृष्टांत :
क) क कलकत्ते में एक व्यापारी है । ख दिल्ली में कारबार करता है । ख कलकत्ते के अपने अभिकर्ता के द्वारा क से माल खरीदता है और ईस्ट इंडियन रेल कम्पनी को उनका परिदान करने को क से प्रार्थना करता है । क तद्नुसार माल का परिदान कलकत्ते में करता है । क माल की कीमत के लिए ख के विरुद्ध वाद या तो कलकत्ते में जहां वाद-हेतुक पैदा हुआ है, या दिल्ली में जहां ख कारबार करता है, ला सकेगा
ख) क शिमला में, ख कलकत्ते में और ग दिल्ली में निवास करता है । क, ख और ग एक साथ बनारस में है जहां ख और ग मांग पर देय एक संयुक्त वचनपत्र तैयार करके उसे क को परिदत्त कर देते है । ख और ग पर क बनारस में वाद ला सकेगा, जहां वाद-हेतुक पैदा हुआ । वह उन पर कलकत्ते में भी, जहां ख निवास करता है, या दिल्ली में भी, जहां ग निवास करता है, वाद ला सकेगा, किन्तु इन अवस्थाओं में से हर एक में यदि अनिवासी प्रतिवादी आक्षेप करे, तो वाद न्यायालय की इजाजत के बिना नहीं चल सकता ।
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ७ द्वारा (१-२-१९७७ से) स्पष्टीकरण १ का लोप किया गया ।
२. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ७ द्वारा (१-२-१९७७ से) स्पष्टीकरण २ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९५१ के अधिनियम सं. २ की धारा ३ द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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