सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा ७ :
प्रान्तीय लघुवाद न्यायालय :
उन न्यायालयों पर, जो प्रान्तीय लघुवाद न्यायालय अधिनियम, १८८७ (१८८७ का ९) के अधीन १.(या बरार लघुवाद न्यायालय विधि, १९०५ के अधीन) गठित हैं, या उन न्यायालयों पर, जो लघुवाद न्यायालय की अधिकारिता का प्रयोग २.(उक्त अधिनियम या विधि के अधीन) करते हैं ३.(या ४.(भारत के किसी ऐसे भाग) के, ४.(जिस पर उक्त अधिनियम का विस्तार नहीं हैं) उन न्यायालयों पर, जो समरुपी अधिकारिता का प्रयोग करते है,) निम्नलिखित उपबन्धों का विस्तार नहीं होगा, अर्थात् :-
क) इस संहिता के पाठ के उतने अंश का, जो -
एक) उन वादों से संबंधित है जो लघुवाद न्यायालय के संज्ञान से अपवादित है,
दो) ऐसे वादों में की डिक्रीयों के निष्पादन से संबंधित है,
तीन) स्थावर सम्पत्ति के विरुद्ध डिक्रियों के निष्पादन से संबंधित है, तथा
ख) निम्नलिखित धाराओं का, अर्थात् -
धारा ९ का,
धारा ९१ और धारा ९२ का,
धारा ९४ और धारा ९५ का ५.(जहां तक कि वे-)
एक) स्थावर सम्पत्ति की कुर्की के लिए आदेशों,
दो) व्यादेशों,
तीन) स्थावर सम्पत्ति के रिसीवर की नियुक्ति, अथवा
चार) धारा ९४ के खण्ड (ङ) में निर्दिष्ट अन्तर्वर्ती आदेशों, को प्राधिकृत करती है या उनसे सम्बन्धित है, तथा धारा ९६ से धारा ११२ तक की धाराओं और धारा ११५ का ।
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१. १९४१ के अधिनियम सं. ४ की धारा २ और तीसरी अनुसूची द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. १९४१ के अधिनियम सं. ४ की धारा २ और तीसरी अनुसूची द्वारा उस अधिनियम के अधीन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९५१ के अधिनियम सं. २ की धारा ५ द्वारा अन्त:स्थापित ।
४. विधि अनुकूलन (सं.२) आदेश, १९५६ द्वारा भाग ख राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. १९२६ के अधिनियम सं. १ की धारा ३ द्वारा जहां तक कि वे आदेशों और अन्तर्वर्ती आदेशों से संबंधित है के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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