सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा ८ :
प्रेसिडेन्सी लघुवाद न्यायालय :
धारा २४, धारा ३८ से धारा ४१ तक की धाराओं, धारा ७५ के खण्ड (क), (ख) और (ग), धारा ७६, १.(धारा ७७, धारा १५७ और धारा १५८) में तथा प्रेसिडेन्सी लघुवाद न्यायालय अधिनियम, १८८२ (१८८२ का १५) द्वारा यथा उपबन्धित के सिवाय, इस संहिता के पाठ के उपबन्धों का विस्तार कलकत्ता, मद्रास और मुम्बई नगरों में स्थापित किसी लघुवाद न्यायालय में के किसी भी वाद या कार्यवाही पर नहीं होगा :
२.(परन्तु -
१) यथास्थिति, फोर्ट विलियम, मद्रास और मुम्बई के उच्च न्यायालय समय-समय पर राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निदेश३.() दे सकेंगे कि ऐसे किन्ही भी उपबन्धों का विस्तार, जो प्रेसिडेन्सी लघुवाद न्यायालय अधिनियम, १८८२ (१८८२ का १५) के अभिव्यक्त उपबन्धों से असंगत न हों और ऐसे उपान्तरों और अनुकूलनों सहित, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, ऐसे न्यायालय में के वादों या कार्यवाहियों पर या वादों या कार्यवाहियों के किसी वर्ग पर होगा ।
२) उक्त उच्च न्यायालयों में से किसी के भी द्वारा प्रेसिडेन्सी लघुवाद न्यायालय अधिनियम, १८८२ (१८८२ का १५) की धारा ९ के अधीन इसके पहले बनाए गए सभी विधिमान्यत: बनाए गए समझे जाएंगे ।
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ४ द्वारा (१-२-१९७७ से) धारा ७७ और १५५ से लेकर १५८ तक की धाराओं के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९१४ के अधिनियम सं. १ की धारा २ द्वारा जोडा गया ।
३. निदेशों के ऐसे उदाहरणों के लिए कलकत्ता राजपत्र (अंग्रेजी), १९१०, भाग १, पृ. ८१४ देखें ।
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