दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय ३१ :
आपराधिक मामलों का अन्तरण :
धारा ४०६ :
मामलों और अपीलों को अंतरित करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति :
१)जब कभी उच्चतम न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि न्याय के उद्देश्यों के लिए यह समीचीन है कि इस धारा के अधीन आदेश किया जाए, तब वह निदेश दे सकता है कि कोई विशिष्ट मामला या अपील एक उच्च न्यायालय से दुसरे उच्च न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दण्ड न्यायालय के दूसरे उच्च न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दण्ड न्यायालय से दुसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले दूसरे दण्ड न्यायालय को अंतरित कर दी जाए ।
२)उच्चतम न्यायालय भारत के महान्यायवादी या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर ही इस धारा के अधीन कार्य कर सकता है और ऐसा प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा किया जाएगा जो उस दशा में सिवाय, जबकि आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का महाधिवक्ता है, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा ।
३)जहाँ इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तीयों का प्रयोग करने के लिए कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है वहाँ, यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 406.
section 406 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1973 section 406 in hindi .
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