दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय ३१ :
आपराधिक मामलों का अन्तरण :
धारा ४०७ :
मामलों और अपीलों को अंतरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति :
१)जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि-
क)उसके अधीनस्थ किसी दण्ड न्यायालय में ऋजु और पक्षपात रहित जाँच या विचारण न हो सकेगा; अथवा
ख)किसी असाधारणत: कठिन विधि प्रश्न के उठने की संभाव्यता है; अथवा
ग)इस धारा के अधीन आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित है, या पक्षकारों या साक्षियों के लिए साधारण सुविधाप्रद होगा, या न्याय के उद्देश्यों के लिए समीचीन है,
तब वह आदेश दे सकेगा कि -
एक)किसी अपराध की जाँच या विचारण ऐसे किसी न्यायालय द्वारा किया जाए जो धारा १७७ से १८५ तक के (जिनके अन्तर्गत यो दोनों धाराएँ भी है ) अधीन तो अर्हित नहीं ह किन्तु ऐसे अपराध की जाँच या विचारण करने के लिए अन्यथा सक्षम है;
दो)कोई विशिष्ट मामला या अपील या मामलों या अपीलों का वर्ग उसके प्राधिकार के अधीनस्थ किसी दण्ड न्यायालय से ऐसे समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले किसी अन्य दण्ड न्यायालय का अंतरित कर दिया जाए;
तीन)कोई विशिष्ट मामला सेशन न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द कर दिया जाए; अथवा
चार)कोई विशिष्ट मामला या अपील स्वयं उसको अंतरित कर दी जाए, और उसका विचारण उसके समक्ष किया जाए ।
२)उच्च न्यायालय निचले न्यायालय की रिपोर्ट पर, या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर या स्वप्रेरणा पर कार्यवाही कर सकता है :
परन्तु किसी मामले को एक ही सेशन खण्ड के एक दण्ड न्यायालय से दूसरे दण्ड न्यायालय को अंतरित करन के लिए आवेदन उच्च न्यायालय से तभी किया जाएगा जब ऐसा अन्तरण करने के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश को कर दिया गया है और उसके द्वारा नामंजूर कर दिया गया है ।
३)उपधारा (१) के अधीन आदेश के लिए प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा किया जाएगा जो, उस दश के सिवाय जब आवेदक राज्य का महाधिवक्ता हो, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा ।
४)जब ऐसा आवेदन कोई अभियुक्त व्यक्ति करता है, तब उच्च न्यायालय उसे निदेश दे सकता है कि वह किसी प्रतिकर के संदाय के लिए जो उच्च न्यायालय उपधारा (७) के अधीन अधिनिर्णीत करे, प्रतिभओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे ।
५)ऐसा आवेदन करने वाला प्रत्येक अभियुक्त व्यक्ति लोक अभियोजक का आवेदन की लिखित सूचना उन आधारों की प्रतिलिपि के सहित देगा जिन पर वह किया गया है, और आवेदन के गुणागुण पर तब तक कोई आदेश न किया जाएगा जब तक ऐसी सूचना के दिए जाने और आवेदन की सूनवाई की सुनवाई के बीच कम से कम चौबीस घण्टे न बीत गए हों ।
६)जहाँ आवेदन किसी अधीनस्थ न्यायालय से कोई मामला या अपील अंतरित करने के लिए है, वहाँ यदि उच्च न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा करना न्याया के हित में आवश्यक है, तो वह आदेश दे सकता है कि जब तक आवेदन का निपटारा न हो जाए तब तक के लिए अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाहियाँ, ऐसे निबंधनों पर, जिन्हें अधिरोपित करना उच्च न्यायालय ठीक समझे, रोक दी जाएगी :
परन्तु ऐसी रोक धारा ३०९ के अधीन प्रतिप्रेषण की अधीनस्थ न्यायालयों की शक्ति पर प्रभाव न डालेगी ।
७)जहाँ उपधारा (१) के अधीन आदेश देने के लिए आवेदन खारीज कर दिया जाता है वहाँ, यदि उच्च न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था ।
८)जब उच्च न्यायालय किसी न्यायालय से किसी मामले का अंतरण अपने समक्ष विचारण करने के लिए उपधारा (१) के अधीन आदेश देताहै तब वह ऐसे विचारण में उसी प्रक्रिया का अनुपालन करेगा जिस मामले का ऐसा अन्तरण न किए जाने की दशा में वह न्यायालय करता ।
९)इस धारा की कोई बात धारा १९७ के अधीन सरकार के किसी आदेश पर प्रभाव डालने वाली न समझी जाएगी ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 407.
section 407 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1973 section 407 in hindi .
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