हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६
धारा ७ :
तरवाड, तावषि, कुटुम्ब, कवर या इल्लम की सम्पत्ति में हित का न्यागमन :
(१) जबकि कोई हिन्दू जिसे यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मरुमक्कतायम या नंबुदिरी विधि लागू होती इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात अपनी मृत्यु के समय, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इस्लम की सम्पत्ति में हित रखते हुए मरे तब सम्पत्ति में उसका हित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, वसीयती या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा न्यागत होगा, मरुमक्कतायम या नंबुदिरी विधि के अनुसार नहीं।
स्पष्टीकरण :
इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए तरवाड, तावषि या इल्लम की सम्पत्ति में हिन्दू का हित, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम की सम्पत्ति में वह अंश समझा जाएगा जो उसे मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु के अव्यवहित पूर्व, यथास्थिति, तरवाड़, तावषि या इल्लम के उस समय जीवित सब सदस्यों में उस सम्पत्ति का विभाजन व्यक्तिवार हुआ होता, चाहे वह अपने को लागू मरुमक्कातायम या नंबुदिरी विधि के अधीन ऐसे विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं तथा ऐसा अंश उसे बांट में आत्यंकित: दिया गया समझा जाएगा।
(२) जबकि कोई हिन्दू, जिसे यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो अलियसन्तान विधि लागू होती इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात अपनी मृत्यु के समय, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरू की सम्पत्ति में अविभक्त हित रखते हुए मरे तब सम्पत्ति में उसका अपना हित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, वसीयती या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा न्यागत होगा, अलियसन्तान विधि के अनुसार नहीं।
स्पष्टीकरण :
इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए कुटुम्ब या कवरु की सम्पत्ति में हिन्दू का हित, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरु की सम्पत्ति में अंश समझा जाएगा जो उसे मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु के अव्यवहित पूर्व, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरु के उस समय जीवित सब सदस्यों में उस सम्पत्ति का विभाजन व्यक्तिवार हुआ होता, चाहे वह अलियसन्तान विधि के अधीन ऐसे विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं तथा ऐसा अंश उसे बांट में आत्यंतिकतः दे दिया गया समझा जाएगा ।
(३) उपधारा (१) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जबकि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात कोई स्थानम्दार मरे तब उसके द्वारा धारित स्थानम सम्पत्ति उस कुटुम्ब के सदस्यों को जिसका वह स्थानम्दार है और स्थानम्दार के वारिसों को ऐसे न्यागत होगी मानो स्थानम समत्ति स्थानम्दार और उसके उस समय जीवित कुटुम्ब के सब सदस्यों के बीच स्थानम्दार की मृत्यु के अव्यवहित पूर्व व्यक्तिवार तौर पर विभाजित कर दी गई थी और स्थानम्दार के कुटुम्ब के सदस्यों और स्थानम्दार के वारिसों को जो अंश मिले उन्हें वे अपनी पृथक सम्पत्ति के तौर पर धारित करेंगे।
स्पष्टीकरण :
इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए स्थानम्दार के कुटुम्ब के अंतर्गत उस कुटुम्ब को, चाहे विभक्त हो या अविभक्त, हर वह शाखा आएगी जिसके पुरुष सदस्य यदि अधिनियम पारित न किया गया होता तो किसी रूढी या प्रथा के आधार पर स्थानम्दार के पद पर उत्तरवर्ती होने के हकदार होते ।
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