सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
आदेश ८ :
१.(लिखित कथन, मुजरा और प्रतिदावा):
नियम १ :
२.(लिखित कथन :
प्रतिवादी, उस पर समन तामील किए जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर, अपनी प्रतिरक्षा का लिखित कथन प्रस्तुत करेगा :)
३.(परन्तु जहां प्रतिवादी तीस दिन की उक्त अवधि के भीतर लिखित कथन फाइल करने में असफल रहता है वहां उसे ऐसे किसी अन्य दिन को लिखित कथन फाइल करने के लिए अनुज्ञात किया जाएगा जो न्यायालय द्वारा, उसके कारणों को लेखबद्ध करके और ऐसे खर्चों का, जो न्यायालय ठीक समझे, संदाय करने पर विनिर्दिष्ट किया जाए, qकतु जो समन के तामील की तारीख से एक सौ बीस दिन के बाद का नहीं होगा और समन की तामील की तारीख से एक सौ बीस दिन की समाप्ति पर प्रतिवादी लिखित कथन फाइल करने का अधिकार खो देगा और न्यायालय लिखित कथन अभिलेख पर लेने के लिए अनुज्ञात नहीं करेगा ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ५८ द्वारा (१-२-१९७७ से) पूर्ववर्ती शीर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. २००२ के अधिनियम सं. २२ की धारा ९ द्वारा (१-७-२००२ से ) नियम १ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. २०१६ के अधिनियम सं. ४ की धारा १६ और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित ।
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