धारा १९ : अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी का आवश्यक होना :
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम १९८८
अध्याय ५ :
अभियोजन के लिए मंजुरी और अन्य प्रकीर्ण उपबंध :
धारा १९ :
अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी का आवश्यक होना :
१) कोई न्यायालय १.(धारा ७, धारा ११, धारा १३ और धारा १५) के अधीन दंडनीय किसी ऐस अपराध का संज्ञान, जिसकी बाबत यह अभिकथित है कि वह लोक सेवक द्वारा किया गया है, २.(जैसा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, २०१३ (२०१४ का अधिनियम संख्यांक १) में अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय ) निम्नलिखित की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं करेगा -
क) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो संघ के मामलों के संबंध में, ३.(यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था) और जो अपने पद से केद्रीय सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से हटाए जाने के सिवाय नहीं हटाया जा सकता है, केंद्रीय सरकार ;
ख) ऐसे व्यक्ति की दशा मे, जो राज्य के मामलों के संबंध में ३.(यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था) और जो अपने पद से राज्य सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से हटाए जाने के सिवाय नहीं हटाया जा सकता है, केंद्रीय सरकार ;
ग) किसी अन्य व्यक्ति की दशा में, उसे उसके पद से हटाने के लिए, समक्ष प्राधिकारी :
४.(परंतु, किसी पुलिस अधिकारी या किसी अन्वेषक अभिकरण के किसी अधिकारी या अन्य विधि प्रवर्तन प्राधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा इस उपधारा में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध का न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के लिए ऐसी सरकार या ऐसे प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के लिए, यथास्थिति, समुचित सरकार या सक्षम प्राधिकारी को कोई अनुरोध तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि,-
एक) ऐसे व्यक्ति ने ऐसे अभिकथित अपराधों के बारे में, जिनके लिए लोक सेवक को अभियोजित किए जाने की ईप्सा की गई है, किसी सक्षम न्यायालय में कोई परिवाद फाइल न किया हो; और
दो) न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ की धारा २०३ के अधीन परिवाद खारिज न कर दिया हो और परिवादी को लोक सेवक के विरुद्ध अभियोजन के लिए आगे कार्रवाई करने के लिए मंजुरी अभिप्राप्त करने का निदेश न दे दिया हो :
परंतु यह और कि किसी पुलिस अधिकारी या किसी अन्वेषक अभिकरण के किसी अधिकारी या अन्य विधि प्रवर्तन प्राधिकारी से भिन्न व्यक्ति से अनुरोध प्राप्त होने की दशा में, समुचित सरकार या सक्षम प्राधिकारी, संबद्ध लोक सेवक को सुने जाने का अवसर प्रदान किए बिना किसी लोक सेवक को अभियोजित करने के लिए मंजूरी नहीं देगा :
परंतु समुचित सरकार या कोई सक्षम प्राधिकारी, इस उपधारा के अधीन किसी लोक सेवक के अभियोजन के लिए मंजूरी की अपेक्षा करने वाले प्रस्ताव की प्राप्ति के पश्चात्, उसकी प्राप्ति की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर उस प्रस्ताव पर अपना विनिश्चय देने का प्रयास करेगा :
परंतु यह और कि उस दशा में जहां अभियोजन हेतु मंजूरी प्रदान करने के प्रयोजन के लिए कोई विधिक परामर्श अपेक्षित है, वहां ऐसी अवधि को लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से एक मास की और अवधि के लिए विस्तारित किया जा सकेगा :
परंतु यह भी कि केन्द्रीय सरकार किसी लोक सेवक के अभियोजन हेतु मंजूरी देने के प्रयोजन के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत विहित कर सकेगी, जो वह आवश्यक समझे ।
स्पष्टीकरण :
उपधारा (१) के प्रयोजनों के लिए, लाकेसेवक पद में निम्नलिखित व्यक्ति सम्मिलित है -
क) ऐसा व्यक्ति, जिसने उस अवधि के दौरान, जिसमें अभिकथित रुप से अपराध किया गया है, पदधारण करना बंद कर दिया था; या
ख) ऐसा व्यक्ति, जिसने उस अवधि के दौरान, जिसमें अभिकथित रुप से अपराध किया गया है, पदधारण करना बंद कर दिया था और वह उस पद से भिन्न कोई अन्य पदधारण कर रहा था, जब अभिकथित रुप से अपराध किया गया है ।)
२) जहां किसी भी कारणवश इस बाबत शंका उत्पन्न हा जाए कि उपधारा (१) के अधीन अपेक्षित पूर्व मंजूरी केंद्रीय या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी में से किसके द्वार दी जानी चाहिए वहां ऐसी मंजूरी उस सरकार या प्राधिकारी द्वारा दी जाएगी जो लोक सेवक को उसके पद से उस समय हटाने के लिए सक्षम था जिस समय अपराध का किया जाना अभिकथित है ।
३) दंड प्रक्रिया संहिता ,१९७३ (१९७४ का २) में किसी बात के होते हुए भी, -
क) विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश किसी न्यायालय द्वारा अपील, पुष्टिकरण या पुनरीक्षण में, अभियोजन के लिए उपधारा (१) के अधीन अपेक्षित मंजूरी के न होने या उसमें कोई त्रुटि, लोप या अनियमितता होने के आधार पर तब तक नहीं उलटा या परिवर्तित किया जाएगा जब तक कि न्यायालय की राय में उसके कारण वास्तव में कोई अन्याय हुआ है;
ख) कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन कार्यवाहियों को किसी प्राधिकारी द्वारा दी गई मंजूरी में किसी त्रुटि, लोप या अनियमितता के आधार पर तब तक नहीं रोकेगा जब तक उसका यह समाधान नहीं हो जाता कि ऐसी त्रुटि, लोप या अनियमितता के परिणामस्वरूप अन्याय हुआ है;
ग)कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अन्य आधार पर कार्यवाहियां नहीं रोकेगा और कोई न्यायालय किसी जांच, विचारण, अपील या अन्य कार्यवाही में पारित किसी अंर्तवर्ती आदेश के संबंध में पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगा ।
४)उपधारा (३) के अधीन यह अवधारित करने में कि ऐसी मंजूरी के न होने से या उसमें किसी त्रुटि, लोप या अनियमितता के होते से कोई अन्याय हुआ या परिणामित हुआ है या नहीं न्यायालय इस तथ्य को ध्यान में रखेगा कि क्या कार्यवाहियों के किसी पूर्वतर प्रक्रम पर आक्षेप किया जा सकता था और किया जाना चाहिए था या नहीं ।
स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -
क) त्रुटि के अंतर्गत मंजूरी देने वाले प्राधिकारी की सक्षमता भी है;
ख) अभियोजन के लिए अपेक्षित मंजूरी के अंतर्गत इस अपेक्षा के प्रति निर्देश भी है कि अभियोजन किसी विनिर्दिष्ट प्राधिकारी की और से, या किसी विनिर्दिष्ट व्यक्ति की मंजूरी से होगा या समतुल्य प्रकृति की कोई अपेक्षा भी है ।
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१. सन २०१८ का अधिनियम क्रमांक १६ की धारा १४ द्वारा (धारा ७, धारा १० ,धारा ११, धारा १३ और धारा १५) शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. २०१४ के अधिनियम सं. १ की धारा ५८ और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित ।
३. सन २०१८ का अधिनियम क्रमांक १६ की धारा १४ द्वारा (नियोजित है) शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. सन २०१८ का अधिनियम क्रमांक १६ की धारा १४ द्वारा उपधारा (१) का खंड (ग) के पश्चात अंत:स्थापित ।
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