भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम १९८८
धारा २० :
१.(जहां लोक सेवक असम्यक् लाभ प्रतिगृहीत करता वहां उपधारणा :
जहां धारा ७ के अधीन या धारा ११ के अधीन दंडनीय किसी अपराध के विचारण में यह साबित कर दिया जाता है कि किसी अपराध के अभियुक्त लोकसेवक ने किसी व्यक्ति से कोई असम्यक् लाभ अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त किया है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न किया है, वहां जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए यह उपधारणा की जाएगी कि उसने, यथास्थिति या तो स्वयं या किसी अन्य लोकसेवक के द्वारा किसी लोक कर्तव्य को अनुचित रुप से या बेइमानी से निष्पादित करने या निष्पादित करवाने के लिए धारा ७ के अधीन हेतु या इनाम के रुप में उस असम्यक् लाभ को, बिना किसी प्रतिफल के या किसी ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसके बारे में वह यह जानता है कि वह धारा ११ के अधीन अपर्याप्त है, प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त किया है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न किया है ।)
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१. सन २०१८ का अधिनियम क्रमांक १६ की धारा १५ द्वारा धारा २० के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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धारा २० :
जहां लोक सेवक वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण प्रतिगृहीत करता है, वहां उपधारणा :
१) जहां धारा ७ या धारा ११ या धारा १३ की उपधारा (१) के खंड (क) या खंड ( ख) के अधीन दंडनीय अपराध के किसी विचारण में यह साबित कर दिया जाता है कि अभियुक्त व्यक्ति ने किसी व्यक्ति से (वैध पारिश्रमिक से भिन्न )कोई परितोषण या कोई मूल्यावन चीज अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त की है अथवा प्रतिगृहीत करने के लिए सहमति ही है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न किया है; वहां जब तक प्रतिकूल न कर दिया जाए यह उपधारणा की जाएगी कि उसने , यथास्थिति उस परितोषण या मूल्यवान चीज को ऐसे हेतु या इनाम के रूप में, जैसा धारा ७ में वर्णित है,, या यथास्थिति, प्रतिफल के बिना या ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसका अपर्याप्त होना वह जानता है, प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त किया है अथवा प्रतिगृहीत करने के लिए सहमत हुआ है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न किया है ।
२) जहां धारा १२ के अधीन या धारा १४ के खंड (ख) के अधीन दंडनीय अपराध के किसी विचारण में यह साबित कर दिया जाता है कि अभियुक्त व्यक्ति ने (वैध पारिश्रिमिक से भिन्न) कोई परितोषण या कोई मूल्यवान चीज दी है या देने की प्रस्थापना की है, या देने का प्रयत्न किया है, वहां जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए यह उपधारणा की जाएगी कि उसन, यथास्थिति, उस परितोषण या मूल्यवान चीज को ऐसे हेतु या इनाम के रूप में, जैसा धारा ७ में वर्णित है या , यथास्थिति, प्रतिफल के बिना या ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसका अपर्याप्त होना वह जानता हो, दिया है या देने की प्रस्थापना की है या देने का प्रयत्न किया है ।
३) उपधारा (१) और (२) में किसी बात के होते हुए भी न्यायालय उक्त उपधाराओं में से किसी में निर्दिष्ट उपधारणा करने से इंकार कर सकेगा यदि पूर्वोक्त परितोषण या चीज, उसकी राय में, इतनी तुच्छ है कि भ्रष्टाचार का कोई निष्कर्ष उचित रूप से नहीं निकाला जा सकता ।
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