धारा ७ : १.( लोक सेवक को रिश्वत दिए जाने से संबंधित अपराध :
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम १९८८
अध्याय ३ :
अपराध और शास्तियां :
धारा ७ :
१.( लोक सेवक को रिश्वत दिए जाने से संबंधित अपराध :
ऐसा कोई लोक सेवक जो, -
क) किसी व्यक्ति से, इस आशय से कोई असम्यक् लाभ अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करता है या अभिप्राप्त करने का प्रयास करता है कि चाहे स्वयं उसके या किसी अन्य लोक सेवक द्वारा किसी लोक कर्तव्य का कार्यपालन अनुचित रुप से या बेईमानी से किया जाए या करवाया जाए या ऐसे कर्तव्य के कार्यपालन को पूरा न किया जाए या न करवाया जाए ; या
ख) किसी लोक कर्तव्य का कार्यपालन अनुचितत रुप से बेइमानी से, चाहे स्वयं के द्वारा या किसी अन्य किसी लोक सेवक द्वारा करने या करवाने या ऐसे कर्तव्य के कार्यपालन को पूरा न करने या न करवाने के लिए किसी इनाम के रुप में कोई असम्यक् लाभ अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है ; या
ग) किसी लोक कर्तव्य का अनुचित रुप से या बेइमानी से कार्यपालन करता है या किसी अन्य लाके सेवक को किसी लोक कर्तव्य का अनुचित रुप से या बेइमानी से कार्यपालन करने हेतु प्रेरित करता है या किसी व्यक्ति से कोई असम्यक् लाभ स्वीकार करने के परिणामस्वरुप या उसकी प्रत्याशा में ऐसे कर्तव्य का कार्यपालन करने से प्रवरित रहता है ;
वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण १ :
इस धारा के प्रयोजन के लिए, किसी असम्यक् लाभ को अभिप्राप्त करने, प्राप्त करने के लिए सहमत होने, प्रतिगृहीत करने या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करने से ही लोक सवेक द्वारा लोक कर्तव्य का पालन स्वयं अपराध का गठन करेगा, चाहे लोक सेवा द्वारा उसका कार्यापालन अनुचित रहा हो या न रहा हो ।
दृष्टांत :
एक लोक सेवक एस एक व्यक्ति, पी से उसके नेमी राशन कार्ड आवेदन को समय से प्रक्रिया में लाने के लिए पांच हजार रुपए की रकम इसे देने को कहता है । एस इस उपधारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
स्पष्टीकरण २ :
इस धारा के प्रयोजन के लिए,-
एक) अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है पदों में ऐसे मामले सम्मिलित होंगे, जहां ऐसा कोई व्यक्ति जो लोक सेवक होते हुए, स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए लोक सेवक के रुप में अपने पद का दुरुपयोग करके या किन्हीं अन्य भ्रष्ट या अवैध साधनों के द्वारा कोई असम्यक् लाभ अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है ।
दो) इस बात का कोई महत्व नहीं होगा कि ऐसा व्यक्ति लोक सेवक होते हुए वह असम्यक् लाभ सीधे या पर पक्षकार के माध्यम से अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है ।)
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१. सन २०१८ का अधिनियम क्रमांक १६ की धारा ४ द्वारा धारा ७, ८, ९ और १० के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
इस से पूर्व धारा निम्नलिखित नुसार थी ।
धारा ७ :
लोक सेवक द्वारा पदीय कार्य के लिए वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण लिया जाना :
जो कोई सेवक होते हुए या होने की प्रत्याशा रखते हुए वैध पारिश्रमिक से भिन्न किसी प्रकार का भी कोई परितोषण इस बात के करने के लिए हेतु या इनाम के रूप में किसी व्यक्ति से अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त करेगा या प्रतिगृहीत करने को सहमत होगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा कि ह लोक सेवक अपना कोई पदीय कार्य करे या करने से प्रविरत रहे अथवा किसी व्यक्ति को अपने पदीय कृत्यों के प्रयोग में कोर्स अनुग्रह या अननुग्रह दिखाए या दिखाने से प्रविरत रहे अथवा केंद्रीय सरकार या किसी राज्य की सरकार या संसद् या किसी राज्य विधान-मंडल में या धारा २ के खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी स्थानीय प्राधिकारी, निगम या सरकारी कंपनी में या किसी लोक सेवक के यहां, चाहे वह नामित हो या नहीं, किसी व्यक्ति का कोई उपकार या अपकार करे या करने का प्रयत्न करे, वह कारावास से, जिसकी अवधि १(तीन वर्ष) से कम नहीं होगी किंतु, १.(सात वर्ष) तक की हा सकेगी और जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
क) लोक सेवक होने की प्रत्याशा रखते हुए -यदि कोई व्यक्ति जो किसी पद पर होने की प्रत्याशा न रखते हुए, दुसरों को प्रवंचना से यह विश्वास करा कर कि वह किसी पद पर होने वाला है और यह कि तब वह उनका उपकार करेगा, उससे परितोषण अभिप्राप्त करेगा, तो वह छल करने का दोषी हो सकेगा किंतु वह इस धशरा में परिभाषित अपराध का दोषी नहीं है ।
ख) परितोषण - परितोषण शब्द से धन संबंधी परितोषण तक, या उन परितोषणों तक ही, जो धन में आंके जाने योग्य हैं, निर्बंधित नहीं है।
ग) वैध पारिश्रमिक -वैध पारिश्रमिक शब्द उस पारिश्रमिक तक ही निर्बंधित नहीं हैं जिसकी मांग कोई लोक सेवक विधि पूर्ण रूप से कर सकता है, किंतु इसके अंतर्गत वह समस्त पारिश्रमिक आता है जिसको प्रतिगृहीत करने के लिए उस सरकार या संगठन द्वारा, जिसकी सेवा में है, उसे अनुज्ञा दी गई है।
घ) करने के लिए हेतुक या इनाम - वह व्यक्ति जो वह कार्य करने के लिए हेतुक या इनाम के रूप में, जिसे करने का उसका आशय नहीं है, या जिसे करने की स्थिति में वह नहीं है या जो उसने नहीं किया है, परितोषण प्राप्त करता है, इस पद के अंतर्गत आता है ।
ड) जहां कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को यह गलत विश्वास करने के लिए उत्प्ररित करता है कि सरकार में उसके असर से उस व्यक्ति को कोई हक अभिप्राप्त हुआ है, और इस प्रकार उस व्यक्ति को इस सेवा के लिए पुरस्कार के रूप में लोक सेवक को धन या कोई अन्य परितोषण देने के लिए उत्प्रेरित करता है, तो यह इस धारा के अधीन लोक सेवक द्वारा किया गया अपराध होगा ।
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१. २०१४ के अधिनियम सं. १ की धारा ५८ और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित ।
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