बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम २००६
धारा ३ :
बाल-विवाहों का, बंधन में आने वाले पक्षकार के, जो बालक है, विकल्प पर शुन्यकरणीय होना :
१)प्रत्येक बाल-विवाह जो चाहे इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् अनुष्ठापित किया गया हो, विवाह बंधन में आने वाले ऐसे पक्षकार के, जो विवाह के समय बालक था, विकल्प पर शुन्यकरणीय होगा :
परंतु किसी बाल-विवाह को अकृतता की डिक्री द्वारा बातिल करने के लिए, विवाह बंधन में आने वाले ऐसे पक्षकार द्वारा ही, जो विवाह के समय बालक था, जिला न्यायालय में अर्जी फाइल की जा सकेगी ।
२) यदि अर्जी फाइल किए जाने के समय, अर्जीदार अवयस्क है तो अर्जी उसके सरंक्षक या वाद-मित्र के साथ-साथ बाल-विवाह प्रतिषेध अधिकारी की मार्फत की जा सकेगी ।
३)इस धारा के अधीन अर्जी किसी भी समय किंतु अर्जी फाइल करने वाले बालक के वयस्कता प्राप्त करने के दो वर्ष पूरे करने से पूर्व फाइल की जा सकेगी ।
४)इस धारा के अधीन अकृतता की डिक्री प्रदान करते समय जिला न्यायालय, विवाह के दोनों पक्षकारों औ उनके माता-पिता या उनके संरक्षकों को यह निदेश देते हुए आदेश करेगा कि वे यथास्थिति, दूसरे पक्षकार, उसके माता-पिता या संरक्षक को विवाह के अवसर पर उसको दूसरे पक्षकार से प्राप्त धन, मूल्यवान वस्तुएं,आभुषण और अन्य उपहार या ऐसी मूल्यवान वस्तुओं, आभूषणों,अन्य उपहारों के मूल्य के बराबर रकम और धन लौटा दे :
परंतु इस धारा के अधीन कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक कि संबध्द पक्षकारों को जिला न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने और यह कारण दर्शित करने के लिए कि ऐसा आदेश क्यों नहीं पारित किया जाए, सूचनाएं दे दी गई हों ।
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