अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम १९५६
धारा २० :
वेश्या का किसी स्थान से हटाया जाना :
१) कोई मजिस्ट्रेट यह इत्तिला मिलने पर कि उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर किसी स्थान में रहने वाला या प्राय: जाने वाला कोई १.(व्यक्ति) वेश्या है, प्राप्त इत्तिला का सार अभिलिखित कर सकेगा और ऐसे १.(व्यक्ति) को उससे यह अपेक्षा करते हुए सूचना दे सकेगा कि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर हो और कारण दर्शित करे कि उससे अपने आप को उस स्थान से हटाने की अपेक्षा और उसमें पुन: प्रवेश करने से प्रतिषिद्ध क्यों न किया जाए ।
२) उपधारा (१) के अधीन दी गई प्रत्येक सूचना के साथ पूर्वोक्त अभिलेख की एक प्रति होगी और वह प्रति सूचना के साथ उस व्यक्ति पर तामील की जाएगी जिसके खिलाफ सूचना जारी की जाती है ।
३) मजिस्ट्रेट, उपधारा (२) में निर्दिष्ट सूचना की तामिल के पश्चात्, प्राप्त सूचना की सच्चाई की जांच करने के लिए अग्रसर होगा, और १.(व्यक्ति) को साक्ष पेश करने का अवसर देने के पश्चात् ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य लेगा जैसा वह ठीक समझता है और यदि ऐसी जांच पर उसे यह प्रतीत होता कि ऐसा १.(व्यक्ति) वेश्या है और साधारण जनता के हित में यह आवश्यक है कि ऐसे १.(व्यक्ति) से अपने आप को वहां से हटा लेने की अपेक्षा की जाए और उसे वहां पुन: प्रवेश करने से प्रतिषिद्ध किया जाए तो मजिस्ट्रेट लिखित आदेश द्वारा जो उसमें विनिर्दिष्ट रीति से उस १.(व्यक्ति) को संसूचित किया जाएगा, उससे अपेक्षा करेगा कि वह ऐसी तारीख के पश्चात् (जो आदेश में विनिर्दिष्ट होगी) जो आदेश की तारीख से सात दिन से कम की न होगी अपने आप को उस स्थान से ऐसे किसी स्थान को जो आदेश में विनिर्दिष्ट होगी) जो आदेश की तारीख से सात दिन से कम की न होगी अपने आप को उस स्थान से ऐसे किसी स्थान को जो चाहे उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर हो या बात ऐसे मार्ग या मार्गों से और ऐसे समय के अन्दर जो आदेश में विनिर्दिष्ट हो हटा ले तथा उसे ऐसे स्थान पर अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट की लिखित अनुज्ञा के बिना उस स्थान में पुन:प्रवेश करने से प्रतिषिद्ध भी कर सकेगा ।
४) जो कोई -
क) इस धारा के अधीन दिए गए आदेश का उसमें विनिर्दिष्ट कालावधि के अन्दर पालन करने में असफल होगा या जब किसी स्थान में अनुज्ञा के बिना पुन:प्रवेश करने से उसे प्रतिषिद्धि करने वाला आदेश प्रवृत्त हो तब उस स्थान में ऐसी अनुज्ञा के बिना पुन:प्रवेश करेगा, या
ख) यह जानते हुए कि किसी १.(व्यक्ति) से इस धारा के अधीन अपेक्षा की गई है कि वह अपने आपको उस स्थान से हटा ले और उसने उसमें पुन:प्रवेश करने की अपेक्षित अनुज्ञा अभिप्राप्त नहीं की है, ऐसे १.(व्यक्ति) को संश्रय उस स्थान में देगा अथवा उसे छुपाएगा,
वह जुमाने से जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा और जारी रहने वाले अपराध की दशा में अतिरिक्त जुर्माने से जो उस प्रथम दिन के पश्चात् जिसके दौरान वह अपराध करता है प्रत्येक दिन के लिए पच्चीस रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।
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१. १९८६ के अधिनियम सं. ४४ की धारा ४ द्वारा (२६-१-१९८७ से) (स्त्री या लडकी) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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