धारा २१ : संरक्षा गृह :
अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम १९५६
धारा २१ :
संरक्षा गृह :
१) राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन १.(इतने संरक्षा गृह और इतनी सुधार संस्थाएं जितनी वह ठीक समझती है स्वविवेकानुसार स्थापित कर सकेगी और ऐसे गृह और संस्थाएं जब स्थापित हो जाएं तब ऐसी रीति से अनुरक्षित रखी जाएंगी) जैसी विहित की जाएं ।
२) राज्य सरकार से भिन्न कोई व्यक्ति या कोई प्राधिकारी इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किसी १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) की स्थापना या अनुरक्षण राज्य सरकार द्वारा इस धारा के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति की शर्तों के अधीन और अनुसार करने के सिवाय नहीं करेगा ।
३) राज्य सरकार किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा इस निमित्त आवेदन द्वारा किए जाने पर ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी को विहित रुप में १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) स्थापित करने और अनुरक्षित रखने के लिए अथवा, यथास्थिति, अनुरक्षित रखने के लिए अनुज्ञप्ति दे सकेगी और ऐसी दी गई अनुज्ञप्ति में ऐसी शर्तें अन्तर्विष्य हो सकेंगी जैसी राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार अधिरोपित करना ठीक समझे :
परन्तु कोई ऐसी शर्त यह अपेक्षा कर सकेगी कि १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) का प्रबंध जहां कहीं साध्य हो स्त्रियों को सौंपा जाएगा :
परन्तु यह और कि इस अधिनियम के प्रारम्भ पर संरक्षा गृह को अनुरक्षित रखने वाले किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को ऐसी अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करने के वास्ते ऐसे प्रारम्भ से छह मास की अवधि की कालावधि अनुज्ञात की जाएगी :
२.(परन्तु यह और कि स्त्री तथा लडकी अनैतिक व्यापार दमन (संशोधन) अधिनियम १९७८ (१९७८ का ४६) के प्रारंभ पर किसी सुधार संस्था को अनुरक्षित रखने वाले किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को, ऐसी अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करने के वास्ते ऐसे प्रारंभ से छह मास की कालावधि अनुज्ञात की जाएगी ।
४) अनुज्ञप्ति देने से पूर्व राज्य सरकार ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी से जिसे वह उस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह इस निमित्त प्राप्त आवेदन के संबंध में पूरा-पूरा अन्वेषण करे और ऐसे अन्वेषण के परिणाम की उसको रिपोर्ट दे तथा ऐसा अन्वेषण करने में वह अधिकारी या प्राधिकारी ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जैसी विहित की जाए ।
५) कोई अनुज्ञप्ति, जब तक कि वह पहले प्रतिसंèहत न कर दी जाए, ऐसी कालावधि तक प्रवृत्त रहेगी जैसी उस अनुज्ञप्ति में विनिर्दिष्ट हो और उसकी समाप्ति की तारीख से कम से कम तीस दिन पूर्व इस निमित्त किए गए आवेदन पर वैसी ही कालावधी के लिए नवीकृत की जा सकेगी ।
६) इस अधिनियम के अधीन दी गई या नवीकृत कोई भी अनुज्ञप्ति अन्तरणीय नहीं होगी ।
७) जहां कोई व्यक्ति या प्राधिकारी जिसे इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्ति दी गई है अथवा ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी का कोई अभिकर्ता या सेवक उसकी शर्तों में से किसी का या इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी का या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में से किसी का, भंग करेगा अथवा जहां किसी १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) की दशा, प्रबंधन या अधीक्षण से राज्य सरकार संतुष्ट नहीं है, वहां राज्य सरकार किसी ऐसी अन्य शास्ति पर जो इस अधिनियम के अधीन उपगत हुई हो, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना अभिलिखित किए जाने वाले कारणों के लिए, उस अनुज्ञप्ति को लिखित आदेश द्वारा प्रतिसंèहत कर सकेगी :
परन्तु ऐसा कोई आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक अनुज्ञप्ति के धारक को ऐसे कारण दर्शित करने का अवसर नहीं दिया जाता कि अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण क्यों न किया जाए ।
८) जहां किसी १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) के संबंध में कोई अनुज्ञप्ति पूर्वगामी उपधारा के अधीन प्रतिसंèहत की गई है वहां १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) ऐसे प्रतिसंहरण की तारीख से काम नहीं करेगा ।
९) किन्हीं नियमों के जो इस निमित्त बनाए जाएं अधीन रहते हुए राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन दी गई या नवीकृत किसी अनुज्ञप्ति में फेरफार या संशोधन भी कर सकेगी ।
१.(९क) राज्य सरकार या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई प्राधिकारी ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस निमित्त बनाए जाएं, किसी संरक्षागृह के किसी अन्त:वासी को किसी अन्य संरक्षागृह या किसी सुधारा संस्था में या किसी सुधार संस्था के किसी अन्त:वासी को किसी अन्य सुधार संस्था या संरक्षागृह में स्थानांतरित कर सकेगा, जहां ऐसा स्थानांतरण, स्थानांतरित किए जाने वाले व्यक्ति के आचरण को, प्रत्येक संस्था में दिए जाने वाले प्रशिक्षण के प्रकार को और मामले की अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते ंहुए वांछनीय समझा जाए :
परन्तु -
क) ऐसे किसी ३.(व्यक्ति) से जिसे इस उपधारा के अधीन स्थानांतरित किया जाता है, उस गृह या संस्था में जिसमें उसे स्थानांतरित किया गया है, उस अवधि से अधिक के लिए ठहरने की अपेक्षा नहीं की जाएगी जिस तक उससे उस गृह या संस्था में ठहरने की अपेक्षा थी जिससे उसे स्थानांतरित किया गया था ;
ख) इस धारा के अधीन प्रत्येक स्थानांतरण आदेश के कारणों को लेखबद्ध किया जाएगा ।)
१०) जो कोई किसी १.(संरक्षा गृह या सुधार संस्था) को इस धारा के उपबंधों के अनुसार स्थापित या अनुरक्षित रखने से अन्यथा स्थापित या अनुरक्षित रखेगा वह प्रथम अपराध की दशा में जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष की हो सकेगी अथवा जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा ।
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१. १९७८ के अधिनियम सं. ४६ की धारा १५ द्वारा (२-१०-१९७९ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९७८ के अधिनियम सं. ४६ की धारा १५ द्वारा (२-१०-१९७९ से) अंत:स्थापित ।
३. १९८६ के अधिनियम सं. ४४ की धारा ४ द्वारा (२६-१-१९८७ से) (स्त्री या लडकी) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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