सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम १९५५
धारा ११ :
पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर वर्धित शास्ति :
जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का या ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण का पहले दोषसिद्ध हो चुकने पर किसी ऐसे अपराध या दुष्प्रेरण का पुन: दोषसिद्ध होगा, १.(वह दोषसिद्धि पर -
(क) द्वितीय अपराध के लिए कम से कम छह मास और अधिक से अधिक एक वर्ष की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कम से कम दो सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा;
(ख) तृतीय अपराध के लिए या तृतीय अपराध के पश्चात्वर्ती किसी अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष और अधिक से अधिक दो वर्ष की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कम से कम पांच सौ रुपए और अधिक से अधिक एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा १४ द्वारा (१९-११-१९७६ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
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