सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम १९५५
धारा १०क :
१.(सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की राज्य सरकार की शक्ति :
(१) यदि विहित रीति में जांच करने के पश्चात, राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि किसी क्षेत्र के निवासी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के किए जाने से सम्बन्धित हैं, या उसका दुष्प्रेरण कर रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए जाने से सम्बन्धित व्यक्तियों को संश्रय दे रहे हैं, या अपराधी या अपराधियों का पता लगाने या पकड़वाने में अपनी शक्ति के अनुसार सभी प्रकार की सहायता नहीं दे रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए जाने के महत्वपूर्ण साक्ष्य को दबा रहे हैं, तो राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे निवासियों पर सामूहिक जुर्माना अधिरोपित कर सकेगी और जुर्माने का ऐसे निवासियों के बीच प्रभाजन कर सकेगी जो सामूहिक रूप से ऐसा जुर्माना देने के लिए दायी हैं और यह कार्य राज्य सरकार वहां के निवासियों की व्यक्तिगत क्षमता के सम्बन्ध में अपने निर्णय के अनुसार करेगी और ऐसा प्रभाजन कराने में राज्य सरकार यह भी तय कर सकेगी कि एक हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब ऐसे जुर्माने के कितने भाग का संदाय करेगा:
परन्तु किसी निवासी के बारे में प्रभाजित जुर्माना तब तक वसूल नहीं किया जाएगा, जब तक कि उसके द्वारा उपधारा (३) के अधीन फाइल की गई अर्जी का निपटारा नहीं कर दिया जाता।
(२) उपधारा (१) के अधीन अधिसूचना की उद्घोषणा ऐसे क्षेत्र में ढोल पीट कर या ऐसी अन्य रीति से की जाएगी, जिसे राज्य सरकार उक्त क्षेत्र के निवासियों को सामूहिक जुर्माने का अधिरोपण सूचित करने के लिए उन परिस्थितियों में सर्वोत्तम समझे।
(३) (क) उपधारा (१) के अधीन सामूहिक जुर्माने के अधिरोपण से या प्रभाजन के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति विहित कालावधि के अन्दर राज्य सरकार के समक्ष या ऐसे अन्य प्राधिकारी के समक्ष जिसे वह सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, ऐसे जुर्माने से छूट पाने के लिए या प्रभाजन के आदेश में परिवर्तन के लिए अर्र्जी फाइल कर सकेगा:
परन्तु ऐसी अर्र्जी फाइल करने के लिए कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी।
(ख) राज्य सरकार या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट प्राधिकारी अर्र्जीदार को सुनवाई के लिए युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के पश्चात ऐसा आदेश पारित करेगा, जो वह ठीक समझे:
परन्तु इस धारा के अधीन छूट दी गई या कम की गई जुर्माने की रकम किसी व्यक्ति से वसूलीय नहीं होगी और किसी क्षेत्र के निवासियों पर उपधारा (१) के अधीन अधिरोपित कुल जुर्माना उस विस्तार तक कम किया गया समझा जाएगा।
(४) उपधारा (३) में किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के शिकार व्यक्तियों को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उसकी राय में उपधारा (१) में विनिर्दिष्ट व्यक्तियों के वर्ग में नहीं आता है, उपधारा (१) के अधीन अधिरोपित सामूहिक जुर्माने से या उसके किसी प्रभाग का संदाय करने के दायित्व से छूट दे सकेगी।
(५) किसी व्यक्ति द्वारा (जिसके अन्तर्गत हिन्दू अविभक्त कुटुंब है) संदेय सामूहिक जुर्माने का प्रभाग, न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माने की वसूली के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) द्वारा उपबन्धित रीति में ऐसे वसूल किया जा सकेगा मानो ऐसा प्रभाग, मजिस्टड्ढेट द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो।)
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१.१९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा १३ द्वारा (१९-११-१९७६ मे) अन्तःस्थापित।
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