नागरिकता अधिनियम १९५५
धारा १० :
नागरिकता से वंचित किया जाना :
(१) भारत का वह नागरिक, जो देशीयकरण द्वारा या संविधान के अनुच्छेद ५ के खण्ड (ग) के ही आधार पर या ऐसे रजिस्ट्रीकरण द्वारा जो संविधान के अनुच्छेद ६ के खण्ड (ख) (दो) या इस अधिनियम की धारा ५ की उपधारा (१) के खण्ड (क) के अधीन के रजिस्ट्रीकरण से भिन्न है, भारत का नागरिक नहीं रह जाएगा यदि उसे इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार के आदेश द्वारा उस नागरिकता से वंचित कर दिया जाता है।
(२) इस धारा के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि केन्द्रीय सरकार ऐसे किसी नागरिक को भारतीय नागरिकता से आदेश द्वारा उस दशा में वंचित कर सकेगी जिसमें कि उसका समाधान हो जाता है-
(क) रजिस्ट्रीकरण या देशीयकरण का प्रमाणपत्र कपट, मिथ्या व्यपदेशन या किसी तात्विक तथ्य को छिपाने द्वारा अभिप्राप्त किया गया था; अथवा
(ख) उस नागरिक ने अपने आपको कार्य या वाणी द्वारा या विधि द्वारा यथास्थापित भारत के संविधान के प्रति अभक्त या अप्रीतिपूर्ण दर्शित किया है, अथवा
(ग) उस नागरिक ने किसी ऐसे युद्ध के दौरान, जिसमें भारत लगा हुआ हो, किसी शत्रु के साथ विधिविरुद्धतया व्यापार किया है या संचार किया है या वह किसी ऐसे कारबार में लगा रहा या उससे सहयुक्त रहा है जिसके बारे में उसे यह ज्ञान था कि वह ऐसी रीति में चलाया जा रहा है कि उससे उस युद्ध में शत्रु को सहयाता मिले; अथवा
(घ) वह नागरिक रजिस्ट्रीकरण या देशीयकरण के पश्चात पांच वर्ष के अन्दर किसी देश में दो वर्ष से अन्यून अवधि के लिए कारावास से दण्डादिष्ट हो चुका है; अथवा
(ङ) वह नागरिक सात वर्ष की निरन्तर कालावधि के लिए भारत के बाहर मामूली तौर से निवासी रहा है और उस कालावधि के दौरान किसी भी समय वह न तो भारत के बाहर किसी देश में किसी शिक्षा-संस्था का विद्यार्थी या भारत में की किसी सरकार की अथवा किसी ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की, जिसका भारत सदस्य है, सेवा में रहा है और न उसने भारत की नागरिकता को प्रतिधारित करने के अपने आशय को किसी भारतीय कौन्सलेट में विहित रीति में प्रतिवर्ष रजिस्ट्रीकृत किया है।
(३) केन्द्रीय सरकार इस धारा के अधीन किसी व्यक्ति को तब के सिवाय नागरिकता से वंचित नहीं करेगी जबकि उसका समाधान हो जाता है कि यह लोक कल्याण का साधक नहीं है कि वह व्यक्ति भारत का नागरिक बना रहे।
(४) इस धारा के अधीन आदेश करने से पूर्व केन्द्रीय सरकार उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध आदेश करने की प्रस्थापना है, लिखित रूप से ऐसी सूचना देगी जिसमें उसे उस आधार की, जिस पर उस आदेश के किए जाने की प्रस्थापना है, और यदि वह आदेशे उपधारा (२) में, उसके खण्ड (ङ) को छोडक़र, विनिर्दिष्ट आधारों में से किसी आधार पर करने की प्रस्थापना है तो इस बात की कि विहित रीति में तन्निमित्त आवेदन करने पर इस धारा के अधीन जांच समिति को अपना मामला निर्देशित कराने का उसे अधिकार है, इत्तिला दी गई होगी।
(५) यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध आदेश उपधारा (२) में, उसके खण्ड (ङ) को छोडक़र, विनिर्दिष्ट आधारों में से किसी आधार पर करने की प्रस्थापना है और वह व्यक्ति विहित रीति में ऐसे आवेदन करता है, तो केन्द्रीय सरकार वह मामला ऐसी जांच समिति को, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त अध्यक्ष से (जो ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कम से कम दस वर्ष तक कोई न्यायिक पद धारण किया है) और दो अन्य सदस्यों से मिलकर बनी होगी, निर्देशित करेगी और किसी अन्य दशा में उस मामले को निर्देशित कर सकेगी।
(६) जांच समिति ऐसे निर्देशन पर जांच ऐसी रीति में करेगी जैसी विहित की जाए और अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को निवेदित करेगी और केन्द्रीय सरकार का इस धारा के अधीन आदेश करने में मार्गदर्शन मामूली तौर से ऐसी रिपोर्ट द्वारा होगा।
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अनुपूरक :
१.(***)
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१. २००४ के अधिनियम सं. ६ की धारा १० द्वारा लोप किया गया।
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