सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा १६ :
वादों का वहां संस्थित किया जाना जहां विषय-वस्तु स्थित है :
किसी विधि द्वारा विहित धन-सम्बन्धी या अन्य परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, वे वाद जो -
क) भाटक या लाभों के सहित या रहित स्थावर सम्पत्ति के प्रत्युद्धरण के लिए,
ख) स्थावर सम्पत्ति के विभाजन के लिए,
ग) स्थावर सम्पत्ति के बन्धक की या उस पर के भार की दशा में पुरोबन्ध, विक्रय या मोचन के लिए,
घ) स्थावर सम्पत्ति में के किसी अन्य अधिकार या हित के अवधारण के लिए,
ङ) स्थावर सम्पत्ति के प्रति किए गए दोष के लिए प्रतिकर के लिए,
च) करस्थम् या कुर्की के वस्तुत: अधीन जंगम सम्पत्ति के प्रत्युद्धरण के लिए,
है, उस न्यायालय में संस्थित किए जाएंगे जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर सम्पत्ति स्थित है :
परन्तु प्रतिवादी के द्वारा या निमित्त धारित स्थावर सम्पत्ति के सम्बन्ध में अनुतोष की सम्पत्ति के प्रति किए गए दोष के लिए प्रतिकर की अभिप्राप्ति के लिए वाद, जहां चाहा गया अनुतोष उसके स्वीय आज्ञानुवर्तन के द्वारा पूर्व रुप से अभिप्राप्त किया जा सकता है, उस न्यायालय में जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रतिवादी वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, संस्थित किया जा सकेगा ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा में सम्पत्ति से १.(भारत) में स्थित सम्पत्ति अभिप्रेत है ।
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१. १९५१ के अधिनियम सं. २ की धारा ३ द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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