सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा २१-क :
वाद लाने के स्थान के बारे में आक्षेप पर डिक्री को अपास्त करने के लिए वाद का वर्जन :
उसी हक के अधीन मुकदमा करने वाले उन्हीं पक्षकारों के बीच या ऐसे पक्षकारों के बीच जिनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन वे या उनमें से कोई दावा करते है, किसी पूर्ववर्ती वाद में पारित डिक्री की विधिमान्यता को वाद लाने के स्थान के बारे में किसी आक्षेप के आधार पर प्रश्नगत करने वाला कोई वाद नहीं लाया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
पूर्ववर्ती वाद पद से वह वाद अभिप्रेत है जो उस वाद के विनिश्चय के पहले विनिश्चित हो चुका है जिनमें डिक्री की विधिमान्यता का प्रश्न उठाया गया है, चाहे पूर्वतन निश्चित वाद उस वाद से पहले संस्थित किया गया हो या बाद में जिसमें डिक्री की विधिमान्यता का प्रश्न उठाया गया है ।)
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा ९ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
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